________________
उपसंहार : २० विज्ञानभिक्षसे पूर्व सर्व प्रथम तर्कको व्याप्तिग्राहक समर्थित एवं सम्पुष्ट किया तथा सबलतासे उसका प्रामाण्य स्थापित किया। उनके पश्चात सभीने उसे व्याप्तिप्राहक स्वीकार कर लिया। तथोपपत्ति और अन्यथानुपपत्ति :
यद्यपि बहिाप्ति, सकलव्याप्ति और अन्तर्व्याप्तिके भेदसे व्याप्ति के तीन भेदों, समव्याप्ति और विषमव्याप्तिके भेदसे उसके दो प्रकारों तथा अन्वयव्याप्ति और व्यतिरेक व्याप्ति इन दो भेदोंका वर्णन तर्कग्रन्थोंमें उपलब्ध होता है किन्तु तथोपपत्ति और अन्यथानुपपत्ति इन दो व्याप्तिप्रकारों (व्याप्तिप्रयोगों ) का कथन केवल जैन तर्कग्रन्थोंमें पाया जाता है। इनपर ध्यान देनेपर जो विशेषता ज्ञात होतो है वह यह है कि अनुमान एक ज्ञान है उसका उपादान कारण ज्ञान ही होना चाहिए । तथोपपत्ति और अन्यथानुपपत्ति ये दोनों ज्ञानात्मक हैं, जब कि उपर्युक्त व्याप्तियाँ ज्ञेयात्मक ( विषयात्मक ) हैं । दूसरी बात यह है कि उक्त व्याप्तियोंमें एक अन्ताप्ति ही ऐसी व्याप्ति है, जो हेतुकी गमकतामें प्रयोजक है, अन्य व्याप्तियां अन्ताप्तिके बिना अव्याप्त और अतिव्याप्त हैं, अत एव वे साधक नहीं हैं। तथा यह अन्तर्व्याप्ति हो तथोपपत्ति और अन्यथानुपपत्तिरूप है अथवा उनका विषय है । इन दोनोंमसे किसी एकका ही प्रयोग पर्याप्त है। इनका विशेष विवेचन तृतीय अध्यायमें किया गया है। साध्याभास :
अकलङ्कने अनुमानाभासोंके विवेचनमें पक्षाभास या प्रतिज्ञाभासके स्थान में साध्याभास शब्दका प्रयोग किया है। अकलङ्कके इस परिवर्तन के कारणपर सक्षम ध्यान देनेपर अवगत होता है कि चूंकि साधनका विषय ( गम्य ) साध्य होता है और साधनका अविनाभाव ( व्याप्तिसम्बन्ध ) साध्यके ही साथ होता है, पक्ष या प्रतिज्ञाके साथ नहीं, अतः साधनाभास ( हेत्वाभास ) का विषय साध्याभास होनेसे उसे ही साधनाभासोंकी तरह स्वीकार करना युक्त है । विद्यानन्दने अकलङ्कको इस सूक्ष्म दृष्टिको परखा और उनका सयुक्तिक समर्थन किया । यथार्थमें अनुमानके मुख्य प्रयोजक साधन और साध्य होनेसे तथा साधनका सीधा सम्बन्ध साध्यके साथ ही होनेसे साधनाभासको भाँति साध्याभास ही विवेचनीय है । अकलङ्कने शक्य, अभिप्रेत और असिद्धको साध्य तथा अशक्य, अनभिप्रेत और सिद्धको साध्याभास प्रतिपादित किया है-(साध्यं शक्यमभिप्रेतमप्रसिद्ध ततोड़परम् । साध्याभासं विरुद्धादि साधनाविषयत्वतः । अकिञ्चित्कर हेत्वाभास :
हेत्वाभासोंके विवेचन-सन्दर्भमें सिद्धसेनने कणाद और न्यायप्रवेशकारक