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________________ २५० : जैन तर्कशाबमें अनुमान-विचार श्यकता एवं अतिरिक्तताका स्पष्ट निर्देश करते हुए स्वरूप प्रतिपादन किया है। अतः यह उनको देन कही जा सकती है । प्रतिपाद्योंको अपेक्षा अनुमान-प्रयोग : __अनुमानप्रयोगके सम्बन्ध में जहां अन्य भारतीय दर्शनोंमें व्युत्पन्न और अन्युत्पन्न प्रतिपाद्योंकी विवक्षा किये बिना अवयवोंका सामान्य कथन मिलता है वहाँ जैन विचारकोंने उक्त प्रतिपाद्योंकी अपेक्षा उनका विशेष प्रतिपादन भी किया है। व्युत्पन्नोंके लिए उन्होंने पक्ष और हेतु ये दो अवयव आःश्यक बतलाये है। उन्हें दृष्टान्त आवश्यक नहीं है । 'सर्व क्षणिक सत्वात्' जैसे स्थलोंमें बौद्धोंने और 'सर्वमभिधेयं प्रमयस्वात्' जैसे केवलान्वयिहेतुक अनुमानोंमें नैयायिकोंने भी दृष्टान्तको स्वीकार नहीं किया । अव्युत्पन्नोंके लिए उक्त दोनों अवयवोंके साथ दृष्टान्त, उपनय और निगमन इन तीन अवयवोंकी भी जैन चिन्तकोंने यथायोग्य आवश्यकता प्रतिपादित की है। इसे और स्पष्ट यों समझिए गृद्धपिच्छ, समन्तभद्र, पूज्यपाद और सिद्धसेनके प्रतिपादनोंसे अवगत होता है कि आरम्भमें प्रतिपाद्यसामान्यकी अपेक्षासे पक्ष, हेतु और दृष्टान्त इन तीन अवयवोंसे अभिप्रेतार्थ ( साध्य ) की सिद्धि को जाती थी। पर उत्तरकालमें अकलरका सङ्केत पाकर कुमारनन्दि और विद्यानन्दने प्रतिपाद्योंको व्युत्पन्न और अव्युत्पन्न दो वर्गों में विभक्त करके उनकी अपेक्षासे पृथक्-पृथक् अवयवोंका कथन किया। उनके बाद माणिक्यनन्दि,देवसूरि आदि परवर्ती जैन ग्रन्थकारोंने उनका समर्थन किया और स्पष्टतया व्युत्पन्नोंके लिए पक्ष और हेतु ये दो तथा अव्युत्पन्नों के बोधार्थ उक्त दोके अतिरिक्त दृष्टान्त, उपनय और निगमन ये तीन सब मिलाकर पांच अवयव निरूपित किये । भद्रबाहुने प्रतिज्ञा, प्रतिज्ञाशुद्धि आदि दश अवयवोंका भी उपदेश दिया, जिसका अनुसरण देवसूरि, हेमचन्द्र और यशोविजयने किया है। व्याप्तिका ग्राहक एकमात्र तर्क : अन्य भारतीय दर्शनोंमें भृयोदर्शन, सहचारदर्शन और व्यभिचारागृहको व्याप्तिग्राहक माना गया है। न्यायदर्शनमें वाचस्पति और सांख्यदर्शनमें विज्ञानभिक्षु इन दो ताकिकोंने व्याप्तिग्रहकी उपर्युक्त सामग्री में तर्कको भी सम्मिलित कर लिया। उनके बाद उदयन, गंगेश, वर्द्धमान प्रभृति ताकिकोंने भी उसे व्याप्तिग्राहक मान लिया। पर स्मरण रहे, जैन परम्परामें आरंभसे तर्कको, जिसे चिन्ता, ऊहा आदि शब्दोंसे व्यवहृत किया गया है, अनमानकी एकमात्र सामग्रीके रूपमें प्रतिपादित किया है। अकलङ्क ऐसे जैन तार्किक हैं जिन्होंने वाचस्पति और
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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