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२६२ : जैन तर्कशास्त्रमें भनुमान-विचार तीन हेत्वाभासोंका कथन किया है, अक्षपादकी भांति उन्होंने पांच हेत्वाभास स्वीकार नहीं किये । प्रश्न हो सकता है कि जैन तार्किक हेतुका एक ( अविनाभावअन्यथानुपपन्नत्व ) रूप मानते हैं, अतः उसके अभावमें उनका हेत्वाभास एक ही होना चाहिए । वैशेषिक, बौद्ध और सांख्य तो हेतुको त्रिरूप तथा नयायिक पंचरूप स्वीकार करते है, अतः उनके अभाव में उनके अनुसार तीन और पांच हेत्वाभास तो युक्त हैं। पर सिद्धसेनका हेत्वाभास-वैविध्य प्रतिपादन कैसे युक्त है ? इसका समाधान सिद्धसेन स्वयं करते हुए कहते हैं कि चूंकि अन्यथानुपपन्नत्वका अभाव तीन तरहसे होता है-कहीं उसकी प्रतीति न होने, कहीं उसमें सन्देह होने और कहीं उसका विपर्याप्त होने से; प्रतीति न होनेपर असिद्ध, सन्देह होनेपर अनैकान्तिक और विपर्यास होनेपर विरुद्ध ये तीन हेत्वाभास होते हैं।
अकलङ्क कहते हैं कि यथार्थ में हेत्वाभास एक ही है और वह है अकिञ्चित्कर, जो अन्यथानुपपन्नत्वके अभावमें होता है । वास्तवमें अनुमानका उत्थापक अविनाभावो हेतु ही है, अतः अविनाभाव ( अन्यथानुपपन्नत्व ) के अभाव हेत्वाभासकी सृष्टि होती है । यतः हेतु एक अन्यथानुपपन्नरूप ही है, अतः उसके अभावमें मूलतः एक ही हेत्वाभास मान्य है और वह है अन्यथा उपपन्नत्व अर्थात् अकिञ्चित्कर। असिद्धादि उसीका विस्तार है । इस प्रकार अकलङ्कके द्वारा 'अकिञ्चित्कर' नामके नये हेत्वाभासकी परिकल्पना उनको अन्यतम उपलब्धि है। बालप्रयोगाभास :
___ माणिक्यनन्दिने आभासोंका विचार करते हुए अनुमानाभाससन्दर्भ में एक 'बालप्रयोगाभास' नामके नये अनुमानाभासकी चर्चा प्रस्तुत की है। इस प्रयोगाभासका तात्पर्य यह है कि जिस मन्दप्रज्ञको समझाने के लिए तीन अवयवोंको आवश्यकता है उसके लिए दो ही अवयवोंका प्रयोग करना, जिसे चारको आवश्यकता है उसे तीन और जिसे पाँचकी जरूरत है उसे चारका ही प्रयोग करना अथवा विपरीत क्रमसे अवयवोंका कथन करना बालप्रयोगाभास है और इस तरह वे चार ( द्वि-अवयवप्रयोगाभास, त्रि-अवयवप्रयोगाभास, चतुरवयवप्रयोगाभास और विपरीतावयवप्रयोगाभास ) सम्भव हैं। माणिक्यनन्दिसे पूर्व इनका कथन दृष्टिगोचर नहीं होता । अतः इनके पुरस्कर्ता माणिक्यनन्दि प्रतीत होते हैं। अनुमानमें अभिनिबोध-मतिज्ञानरूपता और श्रुतरूपता : ___जन वाङ्मयमें अनुमानको अभिनिबोधमतिज्ञान और श्रुत दोनों निरूपित किया है । तत्त्वार्थसूत्रकारने उसे अभिनिबोध कहा है जो मतिज्ञानके पर्यायों में पठित है। षट्खण्डागमकार भूतबलि-पुष्पदन्तने उसे 'हेतुवाद' नामसे व्यवहृत किया है और श्रुतके पर्यायनामोंमें गिनाया है। यद्यपि इन दोनों कथनोंमें कुछ विरोध-सा