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२५६ : जैन तशाच अनुमान-विचार (६) सन्दिग्धोमय-यह असर्वज्ञ है, क्योंकि रागादिमान् है, रथ्यापुरुषको
तरह । यहां रध्यापुरुषमें साध्य और साधन दोनोंका अनिश्चय है। (७) अनन्वय-यह रागादिमान् है, क्योंकि वक्ता है, रथ्यापुरुषकी तरह
यहां रथ्यापुरुपमें रागादिका सद्भाव सिद्ध न होनेसे अन्वय असिद्ध हैं। (८) अप्रदर्शितान्वय-शब्द अनित्य है, क्योंकि कृतक है, घटको तरह ।
यहां 'जो जो कृतक होता है वह वह अनित्य होता है' ऐसा अन्वय प्रदर्शित नहीं है, क्योंकि कृतकताका ज्ञान होने पर भी अनित्यका ज्ञान
शक्य नहीं है। (E) विपरीतान्वय-'जो अनित्य होता है वह कृतक होता है' ऐसा विप
रीत अन्वय प्रस्तुत करना विपरोतान्वय साधर्म्य दृष्टान्ताभास है। ये नौ साधर्म्यदृष्टान्ताभास हैं। २. वैधर्म्यदृष्टान्ताभास : (१) साध्याव्यावृत्त-शब्द नित्य है, क्योंकि अमूर्त है, जो नित्य नहीं
होता वह अमूर्त भी नहीं होता, जैसे परमाणु । यहां परमाणुका दृष्टान्त साध्याव्यावृत्त वैधर्म्य दृष्टान्तभास हैं, कारण कि परमाणुओंमें
साधनको व्यावृत्ति होनेपर भी साध्य (नित्यत्व)को व्यावृत्ति नहीं है। (२) साधनाव्यावृत्त-उक्त अनुमानमें कमका दृष्टान्त साधनाव्यावृत्त
है, क्योंकि उसमें साध्य (नित्यत्व) को व्यावृत्ति रहने पर भी साधन
( अमूर्तत्व ) की अव्यावृत्ति है। (३) उभयाव्यावृत्त-उक्त अनुमानमें हो आकाशका दृष्टान्त उभयाव्या
वृत्त है, क्योंकि आकाशमें न साध्य ( नित्यत्व ) को व्यावृत्ति हैनित्यत्व रहता ही है और न अमूर्त्तत्वको ब्यावृत्ति है-वह उसमें
रहता ही है। ( ४ ) सन्दिग्धसाध्यव्यतिरेक-सुगत सर्वज्ञ हैं, क्योंकि अनुपदेशादिप्रमाण
युक्ततत्त्वप्रवक्ता है, जो सर्वज्ञ नहीं वह उक्त प्रकारका प्रवक्ता नहीं, यथा वोथीपुरुष। यहां वीथीपुरुषमें सर्वज्ञत्वकी व्यावृत्ति अनि
श्चित है, कारण कि परके मनकी बातको जानना दुष्कर है। (५) सन्दिग्धसाधनव्यतिरेक-शब्द अनित्य है क्योंकि सत् है, जो अनित्य
नहीं होता वह सत् भी नहीं होता, जैसे गगन । गगनमें सत्त्वरूप साधनको व्यावृत्ति सन्दिग्ध है, क्योंकि वह अदृश्य है।
१. वादिराज, न्या० वि० वि० २।२११, पृ० २४१ । तुलना न्यायवि० पृ०६७-१०१