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अनुमानाभास-विमर्श : २५५ है। अतः वह एक विरुद्धका भेद है-प्रत्यक्षादिविरुद्ध प्रतिज्ञाभासोंमेंसे कोई एक है। अकलंकका मत है कि जो हेतु विरुद्ध का अव्यभिचारी-विपक्ष में रहनेवाला है उसे विरुद्ध हेत्वाभास होना चाहिए। इस तरह अकलंकने सामान्यरूपसे एक अकिंचित्कर हेत्वाभास स्वीकार करके भी विशेषरूपसे उसके असिद्ध, विरुद्ध और अनेकान्तिक ये तीन तथा अकिंचित्कर सहित चार हेत्वाभासोंका कथन किया है। दृष्टान्ताभास :
अकलंकने प्रतिपाद्यविशेष अथवा स्थलविशेषकी आवश्यकताको ध्यानमें रखते हुए 'सदाभासाः साध्यादिविकलादयः' शब्दों द्वारा साध्यविकल आदि दृष्टान्ताभासोंकी भी सूचना को है। परन्तु उनकी इस संक्षिप्त सूचनापरसे यह ज्ञात करना दुष्कर है कि उन्हें उसके मूल और अवान्तर भेद कितने अभिप्रेत है। पर हाँ, उनके व्याख्याकार वादिराजके व्याख्यान ( विवरण ) से उनके आशयको जाना जा सकता है। वादिराजने' धर्मकीतिको तरह उसके साधर्म्य और वैधयं ये दो मूल भेद और उनके अवान्तर नौ-नौ प्रकार प्रदर्शित किये हैं। यथा१. साधर्म्यष्टान्ताभास : (१) साध्यविकल-शब्द नित्य है, क्योंकि अमूर्तिक है, कर्मको तरह । यहां
कर्म दृष्टान्त साध्यविकल है, कारण कि वह नित्य नहीं है, अनित्य
है। यह साध्यविकल साधर्म्य दृष्टान्ताभासका निदर्शन है। ( २ ) साधनविकल-उक्त अनुमानमें परमाणुका दृष्टान्त देना साधन विकल
साधर्म्यदृष्ठान्ताभास है, क्योंकि परमाणु अमूर्तिक नहीं है, मूर्तिक है । (३) उभयविकल-उपर्युक्त अनुमानमें ही घटका दृष्टान्त उभयविकल
साधर्म्यदृष्टान्ताभास है, क्योंकि घट न नित्य है और न अमूर्तिक,
वह अनित्य तथा मूत्तिक है। ( ४ ) सन्दिग्धसाध्य -सुगत रागादिमान हैं, क्योंकि उत्पन्न होते हैं, रथ्या
पुरुषकी तरह। यहां रथ्यापुरुषमें रागादिका निश्चय नहीं है, क्योंकि
प्रत्यक्षादिसे उनका निश्चय करना अशक्य है । (५) सन्दिग्धसाधन-यह मरणशील है, क्योंकि रागादिमान् है, रथ्या
पुरुषकी तरह । यहां रथ्यापुरुषमें रागादिका पूर्ववत् अनिश्चय है । १. विरुद्धाम्यमिचारी स्यात् विरुद्ध विदुषां पुनः ।
-प्र०सं० का० ४७ तथा का० ४४ को स्वी० वृ० पृ० ११०-१११ । २. न्या० वि० २।२११, पृ० २४० । ३. न्या० वि० २।२११, पृ० २४०-४१ । ४. न्यायवि० ० ९४-१०२ ।