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________________ अनुमानाभास-विमर्श : २३० (६ ) सन्दिग्धोभयव्यतिरेक हरिहरादि संसारो हैं, क्योंकि अज्ञानादि युक्त हैं । जो संसारी नहीं है वह अज्ञानादि दोष युक्त नहीं है, यथा बुद्ध । बुद्ध में संसारित्व साध्य और अज्ञानादियुक्तत्व साधन दोनों को व्यावृत्ति अनिश्चित है। (७) अन्यतिरेक-शब्द नित्य है, क्योंकि अमूर्त है, जो नित्य नहीं वह अमूर्त नहीं, यथा घड़ा । घड़ेमें साध्यको व्यावृत्ति रहनेपर भी हेतुकी व्यावृत्ति तत्प्रयुक्त नहीं है, क्योंकि कर्म अनित्य होनेपर भी अमूर्त (८) अप्रदर्शितव्यतिरेक-शब्द अनित्य है, क्योंकि सत् है, आकाशको तरह । यहां वैधयेण आकाशमें व्यतिरेक अप्रदर्शित है। (९) विपरीतव्यतिरेक-उक्त अनुमानमें ही 'जो सत् नहीं वह अनित्य भी नहीं, जैसे आकाश' यहां साधनको व्यावृत्तिसे साध्यकी व्यावृत्ति दिखाई गयी है, जो विरुद्ध है। इस तरह वादिराजने' अकलंकके अभिप्रायका उद्धघाटन करते हुए नौ साधर्म्यदृष्टान्ताभास और नो हो वैधय॑दृष्टान्ताभारा कुल अठारह दृष्टान्ताभासोंका निरूपण किया है। उपर्युक्त अध्ययनसे विदित होता कि अकलंकके चिन्तनमें हमें साध्याभासके तीन भेदोंकी मान्यता, हेस्वाभाससामान्यका अकिंचित्कर नामकरण और उसके तीन अथवा चार प्रकारोंको परिकल्पना तथा प्रतिपाद्य विशेषकी अपेक्षा साध्यविकलादि दष्टान्ताभासोंकी स्वीकृति ये उपलब्धियां प्राप्त होती हैं। यह अवश्य है कि इन अनुमानदोषोंका प्रतिपादन उनके उपलब्ध न्यायवाङ्मयमें क्रमबद्ध और एकत्र उपलब्ध नहीं होता-अतिसंक्षेपमें ही उनपर प्रकाश प्राप्त होता है। सम्भव है अनुमानदोषोंका निरूपण उन्हें उतना अभीष्ट न हो जितना समीक्ष्य दार्शनिक प्रमेयों ( विषयों ) को समीक्षा । सम्भवतः इसीसे अकलंकके न्यायवाङ्मयके तलदृष्टा माणिक्यनन्दिका ध्यान उधर गया और उन्होंने अपने परीक्षामुखमें आभासोंका प्रतिपादक एक स्वतन्त्र ही परिच्छेद निर्मित कर उसमें अनुमाना भासो. का क्रमबद्ध एवं एकत्र विशद और विस्तृत निरूपण किया है। माणिक्यनन्दिद्वारा अनुमानाभास-प्रतिपादन : यद्यपि जैन परम्परामें जैनन्यायपर जल्पनिर्णय, त्रिलक्षणकदर्थन, वादन्याय, न्यायविनिश्चय, सिद्धिविनिश्चय, प्रमाणसंग्रह जैसे महत्त्वपूर्ण अनेक प्रकरणग्रन्थ लिखे १. ते इमे पूर्वसूचिता अष्टादशापि दृष्टान्ताभासाः । -न्या० वि० वि० १४२११, पृ० २४१ ।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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