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१६८ : जैन तर्कशास्त्र में अनुमान-वि परार्थानुमानवाक्यके दशावयवोंका कथन किया है। परन्तु माठरने' परार्थानुमान वाक्यके तीन ( पक्ष, हेतु और दृष्टान्त ) अवयव प्रतिपादित किये हैं। सांख्योंकी यही त्रिरवयवमान्यता दार्शनिकोंद्वारा अधिक मान्य और आलोच्य रही है।
बौद्ध विद्वान् दिङनागके शिष्य शंकरस्वामीका' मत है कि पक्ष, हेतु और दृष्टान्त द्वारा प्राश्निकोंको अप्रतीत अर्थका प्रतिपादन किया जाता है, अतः उक्त तीन ही साधनावयव हैं । धर्मकीति: इन तीन अवयवोंमेंसे पक्षको निकाल देते हैं
और हेतु तथा दृष्टान्त इन दो अथवा मात्र हेतुको हो परार्थानुमान वाक्यका अवयव मानते हैं।
मीमांसक तार्किक शालिकानाथ, नारायणभट्ट और पार्थसारथिने उक्त तीन (प्रतिज्ञा, हेतु और दृष्टान्त ) अवयव वर्णित किये हैं। नारायणभट्ट दृष्टान्त, उपनय और निगमन इस प्रकारसे भी तोन अवयव मानते हुए मिलते हैं। __जैसा कि हम देख चुके हैं, जैन चिन्तक प्रतिपाद्योंकी दृष्टि से अवयवोंका विचार करते हैं । आरम्भमें प्रतिज्ञा, हेतु और दृष्टान्त इन तीन अवयवोंकी मान्यता होने पर भी उत्तरकाल में अकलङ्क, कुमारनन्दि, विद्यानन्द, माणिक्यनन्दि,प्रभाचन्द्र, देवसूरि, हेमचन्द्र प्रभृति सभी तार्किकोंने प्रतिपाद्योंको अपेक्षासे उनका प्रतिपादन किया है । किसी प्रतिपाद्यको दृष्टि से दो, किसीको अपेक्षासे तीन, किसीके अनुसार चार और किसी अन्य प्रतिपाद्यके अनुरोधसे पाँच अवयव भी कहे जा सकते हैं।
१. पक्षहेतुदृष्टान्ता इति त्र्यवयवम् ।
-माठरवृ० का० ५। २. पक्षहेतुदृष्टान्तवचनैहि प्राश्निकानामप्रतीतोऽर्थः प्रतिपाद्यते इति । एतान्येव त्रयोऽवयवा इत्युच्यन्ते।
-न्यायप्र० पृ० १, २ । ३. प्रमाणवा० १११२८ तथा न्यायवि० तृ० परि० पृ० ११ । हेतुबि० पृ० ५५ । ४. "तत्राबाधित" इति प्रतिशा । “शातसम्बन्धनियमस्य" इत्यनेन दृष्टान्तवचनम् । “एकदेशदर्शनात्" इति हेत्वभिधानम् । तदेवं व्यवयवं साधनम् ।
-प्रकरणपं० पृ० २२० । ५. तस्माल्यवयवं नमः पौनरुक्त्यासहा वयम् । उदाहरणपर्यन्तं यदोदाहरणादिकम् ।
-मानमेयो० पृ० ६४ । ६. न्यायरत्ना० ( मो० को० अनु० परि० सो० ५३ ) पृ० ३६१ ।