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________________ अध्याय:४: प्रथम परिच्छेद अवयव-विमर्श अवयवोंका विकासक्रम : ___ अनुमानके सर्वाङ्गीण विचारके हेतु अवयवोंका विवेचन आवश्यक है। जैन तर्कशात्रमें अनुमानके अवयवोंका सर्वप्रथम संकेत हमें आचार्य गृद्धपिच्छके तत्त्वार्थसूत्रमें मिलता है। गृद्धपिच्छने अनुमानका उल्लेख अनुमानशब्द द्वारा नहीं किया । न उन्होंने अवयवोंका निर्देश भी अवयवरूपमें किया है। पर उनके द्वारा सूत्रोंमें प्रतिपादित आत्माके ऊर्ध्वगमन-सिद्धान्तसे प्रतिज्ञा, हेतु और दृष्टान्त ये तीन अवयव फलित होते हैं। सूत्रकारने मुक्तजीवके ऊर्ध्वगमनकी सिद्धि तर्कपुरस्सर करते हुए निम्न प्रकार लिखा है ( 1 ) तदनन्तरमध्वं गच्छत्यालोकान्तात् । ( २ ) पूर्वप्रयोगादसङ्गत्वाद्वन्धच्छेदात्तथागतिपरिणामाच्च । ( ३ ) आविद्धकुलालचक्रवद्व्यपगतलेपालाबूवदेरण्डबीजवदग्निशिखावच्च।' इन सूत्रोंमें ऊर्ध्वगमनरूप प्रतिज्ञा ( पक्ष ), 'पूर्वप्रयोगात्', 'असङ्गत्वात्', 'बन्धच्छेदात्' और 'तथागतिपरिणामात्' ये चार हेतु तथा इन चार हेतुओंके समर्थनके लिए क्रमशः ‘भाविद्धकुलालचक्रवत्', 'व्यपगतलेपालाबवत्', 'एरण्डबीजवत्' और 'अग्निशिखावत्' ये चार दृष्टान्त प्रयुक्त हैं। इससे स्पष्ट है कि आचार्य गृद्धपिच्छने अनुमानके तीन अवयवोंका यहाँ संकेत किया है। १. त० सू० १०५. ६, ७ ।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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