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व्याप्ति-विमर्श : १४९
अकलङ्कके इस विवेचनसे स्पष्ट है कि प्रत्यक्ष और अनुपलम्भपूर्वक सर्वदेश और सर्वकाल उपसंहाररूप अविनाभाव ( व्याप्ति ) का निश्चय करनेवाला ज्ञान तर्क है और वह प्रमाण है । इसमें प्रत्यक्ष', स्मरण और सादृश्यप्रत्यभिज्ञान परम्परा सहायक हैं ।
तर्कका क्षेत्र व्यापक और विशाल है । प्रत्यक्ष जहां सन्निहितको अनुमान नियत देश - काल में विद्यमान अनुमेयको, उपमान सादृश्यको और आगम शब्दसंकेतादिपर निर्भरितको जानते हैं वहां तर्क सन्निहित असन्निहित, नियत-अनियत देशकालमें विद्यमान साध्य - साधनगत अविनाभावको विषय करता है । तात्पर्य यह कि तर्क केवल प्रत्यक्ष विषयभूत साध्य-साधनों के अविनाभावको ही नहीं, अपितु अनुमेय एवं आगमगभ्य साध्य-साधनोंक भी अविनाभावको उपलम्भ और अनुपलम्भके आधारमे अवगत करता है ।
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परवर्ती विद्यानन्द, माणिक्यनन्द, प्रभाचन्द्र, देवसूरि, हेमचन्द्र, धर्मभूषण प्रभृति सभी जैन तार्किकोंने अकलंकदेवका अनसरण करते हुए तर्क द्वारा ही व्याप्तिग्रहका कथन किया है । विद्यानन्द कहते हैं कि प्रतिपत्ता साध्य और साधनोंके व्याप्ति सम्बन्धका जिस प्रत्यय ( ज्ञान ) द्वारा निश्चय करके अनुमानके लिए प्रवृत्त होता है वह तर्क है तथा व्याप्तिसम्बन्धमं संवादी होनेसे वह प्रमाण हैं । यदि वह संवादी न होता तदुत्पन्न अनुमान भी संवादी नहीं हो सकता । यतः अनुमान संवादी है अतः व्याप्ति-सम्बन्धग्राही तर्क भी अवश्य संवादी है । यदि उसके सम्वादमें सन्देह किया जाए तो अनुमाताको निःशंक अनुमिति नहीं हो सकती। अगर कहा
१. समक्षत्रिकल्पानुस्मरणपरामर्शसम्बन्धाभिनिबोधस्तकः प्रमाणम् ।
--प्रमाणस०] [स्त्री० वृ० का० १२, अ० प्र० पृष्ठ १०० ।
२. तेनातीन्द्रियसाध्यसाधनयोरागमानुमाननिश्चयानिश्चयहेतुक सम्बन्धबाधस्यापि संग्रहान्नाव्याप्तिः । यथा 'अस्त्यस्य प्राणिनो धर्मविशेषो विशिष्टसुखादिसद्भावान्यथानुपपत्तेः', इत्यादी, 'आदित्यस्य गमनशक्तिसम्बन्धोऽस्ति गतिमत्वान्यथानुपपत्तेः' इत्यादौ च । न खलु धर्मविशेषः प्रवचनादन्यतः प्रतिपत्तुं शक्यः, नाप्यतोऽनुमानादन्यतः कुतश्चित्प्रमाणादादित्यस्य इति ।
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- प्रभाचन्द्र, प्रमेयक० भा० ३।११, पृ० ३४८ ।
३. येन हि प्रत्ययेन प्रतिपत्ता साध्यसाधनार्थानां व्याप्त्या सम्बन्धं निश्चित्यानुमानाय प्रवर्त्तते स तर्कः सम्बन्धे संवादात्प्रमाणमिति मन्यामहे । न हि तर्कस्यानुमाननिबन्धने सम्बन्धे संवादाभावेऽनुमानस्य संवादः सम्भवी ।" तर्क संवादसन्देहे निःशंकानुमितिः क्व ते । ... गृहीतग्रणात प्रमाणमिति चेन्न वै । ... प्रत्यक्षानुपलम्भाभ्यां सम्बन्धो देशतो गतः । साध्यसाधनयोस्तर्कात्सामस्त्येनेति चिन्तितम् ॥ प्रमाणमूह प्रमाणं तर्क साध्यसा - धनसम्बन्धाज्ञाननिवृत्तिरूपे साक्षात् स्वार्थनिश्चायने फले साधकतमस्तर्कः ।
- विद्यानन्द, तत्त्वार्थश्लो० १।१३।८४ - ११९ ।