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डॉ० प्रो० दरबारीलाल कोठियाने जैन अनुमानके अध्ययनके सन्दर्भ में भारतीय तर्कशास्त्रमें अनुमानका तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत कर भारतीय न्यायशास्त्रको एक मौलिक कृति प्रदान की है। उनका यह अध्ययन तथ्योंके प्रस्तुतीकरणकी दृष्टि से तो महत्त्वपूर्ण है हो, पर तथ्योंकी पुष्टिके लिए ग्रन्थान्तरोंसे उपस्थित किये गये प्रमाणोंकी दृष्टि से भी समृद्ध है। विषय-सामग्रीकी मौलिकता एवं विषय-प्रतिपादनकी स्वच्छ और विशद शैली नवीन शोध-कर्ताओंके लिए अनुकरणीय है। ___ इसकी सामग्री शोध-खोजकी दिशामें एक नया चरणचिन्ह है। व्याप्ति और हेतुस्वरूपके सम्बन्धमें इतनी विचारपूर्ण सामग्री अन्य किसी ग्रन्थमें उपलब्ध नहीं है। व्याप्तिग्रहके साधनोंकी तटस्थ वृत्तिसे आलोचना करते हुए जैन नैयायिकोंके व्याप्तिग्राहक तर्कका विशेषरूपसे निरूपण किया है । डॉ० कोठियाने तर्कके क्षेत्रको व्यापकता बतलाते हुए प्रभाचन्द्र के आधार पर लिखा है-"प्रत्यक्ष जहाँ सन्निहितको, अनुमान नियत देश-कालमें विद्यमान अनुमेयको, उपमान सादृश्यको और आगम शब्दसंकेतादिपर निर्भरितको जानते हैं, वहाँ तर्क सन्निहित-असन्निहित, नियत-अनियत देश-कालमें विद्यमान साध्य-साधनगत अविनाभावको विषय करता है।" इस प्रकार अनेक प्रमाण और युक्तियोंके आधार पर व्याप्ति-सम्बन्धग्राही तर्ककी प्रामाणिकता सिद्ध की है ।
उल्लेखनीय है कि डॉ० कोठियाने इसमें जैन दृष्टिसे अनुमानके लिए साध्य, साधन और उनके व्याप्तिसम्बन्धको आवश्यक तथा पक्ष और पक्षधर्मताको अनावश्यक बतलाकर भारतीय चिन्तकोंके समक्ष एक नये विचारका और उद्घाटन किया है। साथ ही अनुमानके समस्त घटकोंका विस्तारपूर्वक समालोचनात्मक अध्ययन कर केवल जैन परम्पराके अनुमानका वैशिष्टय ही प्रदर्शित नहीं किया है, अपितु भारतीय तर्कशास्त्रमें अनुमानकी सर्वाङ्गीण अर्हता स्थापित की है।
निस्सन्देह अनुमानपर इतना अच्छा शोधपूर्ण ग्रन्थ हिन्दी भाषामें सर्वप्रथम लिखा गया है। इसके अध्ययनसे न्यायशास्त्रमें रुचि रखनेवाले प्रत्येक जिज्ञासुका ज्ञान-वर्द्धन होगा। डॉ० कोठिया अपने विषयके मर्मज्ञ एवं प्रतिभासम्पन्न मनीषी हैं, उन्होंने विषयके प्रामाणिक विश्लेषणात्मक अध्ययनके साथ प्रत्येक मान्यताके सम्बन्धमें अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त की है। उनकी प्रतिक्रिया एक ऐसे विद्वान्की प्रतिक्रिया है, जिसने मूलग्रन्थ, भाष्य और टीकाओंके गम्भीर अध्ययनके साथ सूक्ष्मतम समस्याओंका भी अनुचिन्तन किया है ।
विषय-प्रतिपादनकी शैली चित्ताकर्षक और सुबोध है तथा विषयके साथ भाषापर भी अच्छा अधिकार है। तर्कशास्त्रकी गहन और दुरूह सामग्रीको सरल