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इस अविनाभावका ज्ञान तर्कके द्वारा होता है। अतएव स्पष्ट है कि अनुमानको सत्यताका निर्णय तर्क द्वारा ही किया जाता है। इस प्रकार भारतीय न्यायशास्त्रमें तर्क और अनुमानके मध्यमें विभेदक सीमारेखा विद्यमान है। दूसरे शब्दोंमें यों कहा जा सकता है कि तर्कका क्षेत्र अनुमानसे आगे है। अनुमानके दोषोंका निराकरण कर उसके अध्ययनको व्यवस्थित रूप प्रदान करना तर्कका कार्य है। अतः "तर्कशास्त्र वह विज्ञान है, जो अनुमानके व्यापक नियमों तथा अन्य सहायक मानसिक क्रियाओंका अध्ययन इस ध्येयसे करता है कि उनके व्यवहारसे सत्यताकी प्राप्ति हो' । इस परिभाषाके विश्लेषणसे दो तथ्य प्रस्फुटित होते हैं
१. अनुमानके दोषोंका विश्लेषण तर्क द्वारा होता है तथा उसकी अविसंवादिताको पुष्टि भी तर्कसे होती है।
२. तर्कद्वारा अनुमानमें सहायक मानसिक क्रियाओंका भी अध्ययन किया जाता है। आशय यह है कि गलत अनुमानसे बचनेका उपाय तर्कका आश्रय ग्रहण करना है। यतः तर्कशास्त्रका सम्बन्ध विशेषतः अनुमानसे है। अनुमानको तर्कशास्त्रसे हटा देनेपर तर्कशास्त्रका अस्तित्व ही खतरे में पड़ जायगा। भूत और भविष्यको मानवके सम्पर्कमें लानेका कार्य अनमान ही करता है। अनुमानके सहारे ही भविष्यकी खोज और भूतकी परीक्षा की जाती है। यहां यह स्मरणीय है कि अनुमानजन्य ज्ञानका क्षेत्र प्रत्यक्ष ज्ञानके क्षेत्रसे बहुत बड़ा है। अल्प ज्ञानसे महत् अज्ञानकी जानकारी अनमान द्वारा होती है। प्रत्यक्षको प्रमाणतामें सन्देह होनेपर अनुमान हो उक्त सन्देहका निराकरण कर प्रामाण्यकी प्रतिष्ठा करता है । प्रत्यक्ष जहाँ अनुमानके मूलमें रहता है, वहाँ प्रत्यक्षकी प्रामाणिकता कभी-कभी अनुमानपर अवलम्बित देखी जाती है। जहाँ युक्ति द्वारा प्रत्यक्षके किसी विषयका समर्थन किया जाता है वहाँ आपाततः अनुमान आ जाता है ।
अनुमानके महत्त्वका निरूपण करते हुए श्री गङ्गेश उपाध्यायने लिखा है"प्रत्यक्षपरिकलितमप्यर्थमनुमानेन बुभुन्सन्ते तकरसिकाः२ अर्थात् विचारशील तार्किक प्रत्यक्षद्वारा अवगत भी अर्थको अनुमानसे जाननेकी इच्छा करते हैं। अतएव असम्बद्ध और अवर्तमान-अतीत, अनागत, दूरवर्ती और सूक्ष्म-व्यवहित अर्थोंका ज्ञान अनुमानसे होता है। इस प्रकार भारतीय चिन्तकोंने वस्तुज्ञान और व्यवस्थाके लिए अनुमानकी आवश्यकता एवं उपयोगितापर प्रकाश डाला है । पाश्चात्य तर्कशास्त्र में वर्णित 'काज एण्ड इफैक्ट्स ' ( Cause and effects ) को अन्वेषणविधियाँ भो भारतीय अनुमानमें समाविष्ट हैं । अतः स्पष्ट है कि भारतीय तर्कशास्त्रमें अनुमानका महत्त्व अन्य प्रमाणोंसे कम नहीं है ।
१ तत्तिन्निर्णयः-परीक्षामुखसूत्र ३।१५। २ तत्त्वचिन्तामणि पृष्ठ ४२४ ।