SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ल २-म गुण पर्याय २-द्रव्याधिकार तो क्या दोष आये ? लक्षण अति व्याप्त हो जाये अर्थात जीव व पुद्गल के अतिरिक्त अन्य चारों द्रव्यों को भी सहकारी बन बैठे। ११८. धर्म द्रव्य किस किस द्रव्य को सहाई है और क्यों? केवल जीव व पुद्गल को, क्योंकि वे दोनों ही गमन करने का समर्थ हैं। ११९. गतिरूप परिणमन कितने प्रकार का होता है ? दो प्रकार का-परिस्पन्दन व क्रिया। १२०. परिस्पन्दन किसे कहते हैं ? द्रव्य अपने स्थान से न डिगे पर उसके प्रदेश अन्दर ही अन्दर काम्पते रहें, उसे परिस्पन्दन कहते हैं । १२१. किया किसे कहते हैं ? द्रव्य अपना स्थान छोड़कर स्थानान्तर को प्राप्त हो जाये तो उसे क्रिया कहते हैं। १२२. द्रव्य के आकार निर्माण में धर्म द्रव्य का क्या स्थान है ? जीव व पुद्गल के प्रदेशों का फैलना इसी के निमित्त से होता १२३. धर्म द्रव्य कहां रहता है ? लोकाकाश में सर्वत्र व्यापकर । (१२४) धर्म द्रव्य खण्ड रूप है किंवा अखण्ड रूप और इसकी स्थिति कहां है ? धर्म द्रव्य एक अखण्ड द्रव्य है। यह समस्त लोक में रहता है। १२५. धर्म द्रव्य को लोक व्यापक क्यों माना ? जीव व पुद्गल की एक समय की गति आकाश के एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश पर्यन्त भी हो सकती है और उत्कृष्टतः सर्व लोक में भी। १२६. सिद्ध भगवान लोक के ऊपर क्यों नहीं जाते ? ___ क्योंकि वहां धर्म द्रव्य नहीं है। १२७. क्या सिद्ध भगवान में लोक के ऊपर जाने की शक्ति नहीं है ?
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy