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२-द्रव्य गुण पर्याय
२-द्रव्याधिकार
उनमें तो गमन की शक्ति है पर सहकारी कारण के बिना
गमन सम्भव नहीं, जैसे जल बिना मछली। १२८. धर्म द्रव्य की सिद्धि कैसे होती है ?
यह न होता तो जीव व पुद्गल को लोकाकाश के बाहर चला जाने से कौन रोकता, और तब लोक व अलोक का विभाग
भी कैसे हो सकता। १२६. धर्म द्रव्य के उदासीन सहकारीपने को उदाहरण से समझाओ ।
जैसे जल मछली को बलपूर्वक नहीं चलाता बल्कि जल में वह स्वयं चाहे तो चले, वैसे ही धर्म द्रव्य जीव को बलपूर्वक नहीं चलाता बल्कि उसमें रहता हुआ स्वयं चाहे तो चले । जिस प्रकार जल के अभाव में मछली यदि चाहे तो भी चल नहीं सकती, उसी प्रकार धर्म द्रव्य के अभाव जीव यदि चाहे तो भी चल नहीं सकता।
(४. अधर्म द्रव्य) १३०. अधर्म द्रव्य किसको कहते हैं ?
गति पूर्वक स्थितिरूप परिणमै जीव और पुद्गल की स्थिति में
सहकारी हो उसे अधर्म द्रव्य कहते हैं । १३१. अधर्म द्रव्य के लक्षण में से 'गति पूर्वक स्थिति' ये शब्द निकाल
देंतो क्या दोष ? जीव पुद्गल के अतिरिक्त शेष चार द्रव्य नित्य स्थित हैं । उनकी स्थिति में भी कारण बन बैठे और इस प्रकार अति
व्याप्ति आ जाये। १३२. अधर्म द्रव्य के लक्षण में से 'जीव पुद्गल' ये शब्द निकाल दें तो
क्या दोष ? तब भी लक्षण अतिव्याप्त हो जाये, क्योंकि उनके अतिरिक्त
शेष चार द्रव्यों में भी उसका व्यापार होने का प्रसंग आये। १३३. अधर्म द्रव्य किस किस द्रव्य को सहाई है और क्यों ?
केवल जीव व पुद्गल को, क्योंकि वे दोनों ही गमन करने में