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२-प्रव्य गुण पर्याय
२/२-द्रव्याधिकार और टूट कर परमाणु तक बन जाये। पूरण जलन स्वभावी होने
के कारण 'पुद्गल' है। ४४. पुद्गल का लक्षण मूर्तीक करें तो क्या हानि ?
नहीं, क्योंकि प्राथमिक जन इतने मात्र से समझ नहीं सकते,
अथवा मूर्तीक में आकार मात्र की भ्रान्ति हो जायेगी। ४५. जिसकी कोई मूर्ती या आकार हो सो मूर्तीक, क्या ठीक है?
नहीं, क्योंकि मूर्ती आकार को कहते हैं और मूर्तीकपना इन्द्रियग्राह्यता को । मूर्ती छहों द्रव्यों में है पर मूर्तीकपना केवल
पुद्गल में। ४६. जिसमें रूप पाया जाये सो रूपी क्या यह ठीक है ?
केवल रूप नहीं बल्कि जिसमें रूप रस गन्ध व स्पर्श चारों पाये
जायें सो रूपी। ४७. जो नेत्र से दिखाई दे सो रूपी क्या यह ठीक है ?
नेत्र ही से नहीं, बल्कि किसी भी इन्द्रिय के गम्य हो सो रूपी। ४८. शब्द कर्ण इन्द्रिय गोचर है, क्या वह रूपी है ?
हां, शास्त्रों में शब्द को रूपी माना गया है। ४६. क्या तुमने कभी अपना फोटो खिंचवाया है ?
खिंचवाया है पर अपना नहीं शरीर का। ५०. आकारवान द्रव्य रूपी होता है ?
नहीं, आकार तो अरूपी द्रव्यों में भी होता है । ५१. विश्व में जो कुछ भी दृष्टि है वह वास्तव में क्या है ?
सब पुद्गल है, क्योंकि इन्द्रियों द्वारा पुद्गल के अतिरिक्त कुछ भी ग्रहण नहीं हो सकता; अथवा सब किसी न किसी जीव के जीवित या मृत शरीर ही दृष्टिगत हो रहे हैं। जैसे-मेज व पुस्तक वनस्पति कायिक जीव के मृतक कलेवर हैं और यह
डब्बा पृथिवी कायिक का। ५२. पुद्गल द्रव्य के कितने भेव हैं ?
दो भेद हैं--एक परमाण दूसरा स्कन्ध ।