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२-द्रव्य गुण पर्याय
४० २/१- सामान्य अधिकार ४४. गुण की व्याख्या में से 'सर्व अवस्थाओं में इतना भाग काट दें
तो क्या दोष प्राप्त हो ? लक्षण अव्याप्त हो जायेगा, क्योंकि द्रव्य की जिस अवस्था में गुण रहेगा उस अवस्था में तो वह द्रव्य कहलावेगा, पर अन्य अवस्था में उसका अभाव ही हो जायेगा, क्योंकि तब वहां गुणों का समूह प्राप्त न होने से द्रव्य का लक्षण घटित न हो
सकेगा। ४५. 'जो तादात्म्य रूप से द्रव्य में रहे उसे गुण कहते हैं' ऐसा कहें
तो? लक्षण में अव्याप्त व अतिव्याप्त दोनों दोष प्राप्त होते हैं - (क) तादात्म्य कहने से क्षेत्र तो आ जाता है पर काल नहीं
आता । इसलिये लक्षण अव्याप्त रहता है। (ख) यह लक्षण गुण व पर्याय दोनों में चरितार्थ होता है,
क्योंकि पर्याय भी द्रव्य के साथ तादात्म्य रहती है।
इसलिये लक्षण अतिव्याप्त हो जाता है । ४६. गुण की व्याख्या में से 'सर्व भागों में इतना भाग काट दें तो क्या
हानि ?
लक्षण अव्याप्त हो जायेगा, क्योंकि द्रव्य के एक कोने में गुण रहेगा और दूसरे में नहीं। उस खाली वाले कोने या भाग में गुणों का समूह प्राप्त न होने से द्रव्य का लक्षण घटित न
होगा। ४७. 'सर्व भागों में इतने पद द्वारा क्या घोषित होता है ?
द्रव्य का 'स्व-क्षेत्र' बताया जाता है । ४८. 'सर्व अवस्थाओं में इतने पद द्वारा क्या घोषित होता है ?
द्रव्य का 'स्व-काल' बताया जाता है। ४६. गुण की व्याख्या में भाववाची शब्द कौनसा है ?
तहां कहा गया 'गुण' शब्द ही 'भाव' को प्रगट करता है ? ५०. उत्पन्न ध्वंसी भाव गुण है या पर्याय कारण सहित बतायें ।
गुण नहीं पर्याय है, क्योंकि वे सर्व अवस्थाओं में नहीं रहते।