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२-द्रव्य गुण पर्याय
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२/१- सामान्य अधिकार
३६. स्वचतुष्टय को दो भागों में करके दिखाओ।
गुणों का अधिष्ठान होने से द्रव्य क्षेत्रात्मक है, इसलिये 'स्व-क्षेत्र' को द्रव्य में गभित कर दीजिये । गुण या भाव परिणामी होने से 'स्व-काल' को उसमें गभित कर दीजिये। इस प्रकार 'द्रव्य'
व 'भाव' दो ही प्रधान विभाग हैं। ४०. गभित ही करना है तो भाव व काल को भी द्रव्य में ही भित
करके एक ही विभाग रहने दो। नहीं, क्योंकि क्षेत्र व भाव में अन्तर है । क्षेत्र तो प्रदेशों की रचना का नाम है और भाव रस स्वरूप होते हैं । जीव व अजीव दोनों ही द्रव्यों का क्षेत्र तो प्रदेशात्मक मात्र होने से एक प्रकार से जड़ ही है और भाव जीव द्रव्य में चेतन होते हैं तथा अजीव द्रव्य में चेतन के उपभोग्य । क्षेत्र द्रव्य का बाहरी रूप है और भाव उसका भीतरी रूप । क्षेत्र या प्रदेशों में हलन चलन होता है और भावों में बिना हिले जुले ही परिणमन होता है। द्रव्य की क्षेत्र परिवर्तन में कोई हानि वृद्धि नहीं होती पर भाव परिवर्तन मे हानि वृद्धि होती है।
(विशेष आगे बताया जायेगा) ४१. द्रव्य कितने प्रकार का होता है ?
छः प्रकार का—जीव, पुदगल, धर्म, अधर्म, आकाश व काल । (नोट-इनका पृथक २ विस्तार से विवेचन आगे किया जायेगा)
(३. गुण) ४२. गुण किसे कहते हैं ?
जो द्रव्य के सम्पूर्ण हिस्सों में व सर्व हालतों में रहे उसे
गुण कहते हैं। ४३. गुण की व्याख्या में स्वचतुष्टय दर्शाओ।।
व्याख्या के चार भाग हैं- १. द्रव्य के, २. सम्पूर्ण हिस्सों में, ३. व सर्व हालतों में रहे, ४. उसे गुण कहते हैं । वहां मं० १ से 'द्रव्य', नं० २ से 'क्षेत्र नं०३ से 'काल' और नं० ४ से 'भाव' कहा गया है।