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७-स्पाद्वाद
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२-अनेकान्ताधिकार
(ख) 'तत्-अतत्' धर्म-युगल भी तिर्यक सामान्य रूप एक द्रव्य
में गुण पर्याय रूप सहभावी विशेष उत्पन्न करता है। (ग) 'एक-अनेक' धर्म-युगल ऊर्ध्वता सामान्य में क्रमभावी
विशेष उत्पन्न करता है। (घ) 'नित्य-अनित्य' धर्म-युगल ऊर्ध्वता सामान्य रूप ध्रुवत्व
में उत्पाद व्यय रूप विशेष उत्पन्न करता है। १४. युग्म चतुष्टय में पांचों भाव कैसे घटित होते हैं ?
अत्यन्ताभाव व अन्योन्याभाव के द्वारा सत्-असत् धर्म उत्पन्न होते हैं । तद्भाव के द्वारा तत्-अतत् व एक अनेक धर्म उत्पन्न होते हैं। प्रागभाव व प्रध्वंसाभाव के द्वारा एक अनेक तथा
नित्य-अनित्य धर्म उत्पन्न होते हैं। १५. पदार्थ के स्वरूप में विरोध भले न हो पर सुनने में तो लगता
साधारण रूप से कहने सुनने में अवश्य विरोध लगता है, परन्तु
स्याद्वाद पद्धति से कहने पर विरोध नहीं लगता। १६. अनेकान्त कितने प्रकार का होता है ?
दो प्रकार का-सम्यक व मिथ्या। १७. सम्यक् अनेकान्त किसको कहते हैं ?
पदार्थ में समस्त धर्मों को एक रूप से अखण्ड देखना सम्यक् अनेकान्त है अथवा एक ही पदार्थ में अपेक्षावश विरोधी शक्तियों को देखना अनेकान्त है; जैसे जो घट 'सत्' धर्म युक्त
है वही किसी अन्य अपेक्षा में 'असत्' धर्म युक्त है। १८. मिथ्या अनेकान्त किसको कहते हैं ?
पदार्थ के समस्त धर्मों को इस प्रकार देखना, मानो वे कोई पृथक पृथक स्वतन्त्र पदार्थ हों, जिनका परस्पर में एक दूसरे से कोई सम्बन्ध नहीं । जैसे—सत् धर्मयुक्त घट तो कोई और है और असत् धर्म युक्त कोई और ।