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७/३ स्याद्वादाधिकार
१. स्याद्वाद किसको कहते हैं ?
स्यात् + वाद = स्याद्वाद । अर्थात प्रत्येक बात को 'स्यात्' पद
से अलंकृत करके बोलने की पद्धति को स्याद्वाद कहते हैं। २. अनेकान्त व स्याद्वाद में क्या अन्तर है ?
अनेक धर्मात्मक पदार्थ का अपना अखण्ड स्वरूप तो अनेकान्त है और उसको कहने की पद्धति का नाम स्याद्वाद है। स्याद्वाद
वाचक है और अनेकान्त वाच्य । ३. 'स्यात' पद का क्या अर्थ है ?
स्यात, कथञ्चित, किसी अपेक्षा से, किसी अभिप्राय से, किसी दृष्टिविशेष से, किसी प्रयोजनवश-ये सभी पद एकार्थवाची
४. अपेक्षा या दृष्टि किसको कहते हैं ?
वक्ता के अभिप्राय को उसकी अपेक्षा या दृष्टि कहते हैं। ५. वक्ता का अभिप्राय किसको कहते हैं ?
यद्यपि वस्तु में सभी धर्म एक रस रूप से युगपत रहते हैं, परन्तु युगपत कहे जाने सम्भव नहीं, इसलिये वक्ता कभी तो सामान्य को तरफ अपना लक्ष्य ले जाकर उस ओर से उस पदार्थ का कथन करने लगता है, और कभी विशेष की ओर लक्ष्य ले जाकर उस ओर से पदार्थ का कथन करने लगता है। इसे ही वक्ता का अभिप्राय कहते हैं। यह लक्ष्य या अभिप्राय वह