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५-गुणस्थान
२-गुणस्थानाधिकार (८१) चौदहवें गुणस्थान में उदय कितनी प्रकृतियों का होता है ?
तेरहवं गुणस्थान में जो ४२ प्रकृतियों का उदय होता है, उनमें से व्युच्छित्ति प्रकृति ३० को घटाने पर शेष रही १२ प्रकृतियों का उदय होता है। (व्युच्छित्ति की ३० असाता वेदनीय, वज्रर्षभ नाराच संहनन, निर्माण, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुस्वर, दुःस्वर, प्रशस्त विहायोगति, अप्रशस्त विहायोगति, औदारिक शरीर, औदारिक अंगोपांग, तैजस शरीर, कार्माण शरीर, समचतुरस्र, न्यग्रोध, स्वाति, कुन्जक, वामन, हुंडक संस्थान; स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छवास, प्रत्येक); (शेष १२ प्रकृतियां = साता वेदनीय, मनुष्यगति, मनुष्यायु, पंचेन्द्रिय जाति, सुभग, लस, बादर,
पर्याप्त, आदेय, यश:कीति, तीर्थंकर, उच्चग्रोत्र) (८२) चौदहवें गुणस्थान में सत्व कितनी प्रकृतियों का रहता है ?
तेरहवें गुणस्थान की तरह इस गुणस्थान में भी ८५ प्रकृतियों का सत्त्व है, परन्तु द्विचरम समय में ७२ और अन्तिम समय में १३ प्रकृतियों का सत्व नष्ट करके अर्हन्त भगवान मोक्ष पधारते हैं।
प्रश्नावली अध्याय स्वयं प्रश्नावली है।