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२ - गुणस्थानाधिकार
जीवों को मोक्षमार्ग का उपदेश देकर संसार में मोक्षमार्ग का प्रकाश करते हैं ।
(७६) तेरहवे गुणस्थान में बन्ध कितनी प्रकृतियों का होता है ? एक मात्र सातावेदनीय का बन्ध होता है ।
(७७) तेरहवे गुणस्थान में उदय कितनी प्रकृतियों का होता है ?
५- गुणस्थान
बारहवें गुणस्थान में जो ५७ प्रकृतियों का उदय होता है, उनमें से व्युच्छित्ति प्रकृति १६ को घटा देने पर शेष रही ४१ प्रकृतियों में तीर्थंकर की अपेक्षा से एक तीर्थकर प्रकृति (जो अनुदय रूप थी) को मिलाने से ४२ प्रकृतियों का उदय होता है । ( व्यच्छित्ति की १६ - ज्ञानावरण ५, दर्शनावरणीय ४, अंतराय ५, निद्रा और प्रचला ) ।
(७८) तेरहवें गुणस्थान में सत्व कितनी प्रकृतियों का होता है ? बारहवें गुणस्थान में जो १०१ प्रकृतियों का सत्व है, उनमें से व्युच्छित्ति प्रकृति १६ को घटा देने पर शेष ८५ प्रकृतियों का सत्व रहता है । ( व्युच्छित्ति की १६ - ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ४, अन्तराय ५, निद्रा और प्रचला ) ।
(७६) अयोग केवली गुणस्थान का स्वरूप क्या है, और वह किसके होता है ?
मन वचन काय के योगों से रहित केवलज्ञान सहित अर्हन्त भट्टारक के चौदहवां गुणस्थान होता है । इस गुणस्थान का काल अ, इ, उ, ऋ, लृ इन पांच ह्रस्व स्वरों के उच्चारण करने के बराबर है । अपने गुणस्थान के काल के द्विचरम समय में सत्ता की ८५ प्रकृतियों में से ७२ प्रकृतियों का और चरम समय में १३ प्रकृतियों का नाश करके अर्हन्त भगवान मोक्षधाम (सिद्ध शिला) को पधारते हैं ।
(८०) चौदहवें गुणस्थान में बन्ध कितनी प्रकृतियों का होता है ? तेरहवें गुणस्थान में जो एक सातावेदनीय का बन्ध होता था, उसकी उसी गुणस्थान में व्युच्छित्ति हो जाने से यहां किसी भी प्रकृति का बन्ध नहीं होता ।