________________
५- गुणस्थान
२५६
२ - गुणस्थानाधिकार
(७०) ग्यारहवें गुणस्थान में सत्व कितनी प्रकृतियों का रहता है ? नवमें और दशवें गुणस्थानकी तरह द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टि के १४२ और क्षायिक सम्यग्दृष्टि के १३६ का सत्त्व है । ( क्षपक श्रेणी यहां होती नहीं) ।
(७१) क्षीणमोह नामक बारहवें गुणस्थान का स्वरूप क्या है ?
मोहनीय कर्म के अत्यन्त क्षय होने से स्फटिक भाजनगत जल की तरह अत्यन्त निर्मल अविनाशी यथाख्यात चारित्र के धारक मुनि के क्षीणमोह नामक गुणस्थान होता है ।
(७२) बारहवें गुणस्थान में बन्ध कितनी प्रकृतियों का होता है ? एक सातावेदनीय मात्र का बन्ध होता है ।
(७३) बारहवें गुणस्थान में उदय कितनी प्रकृतियों का होता है ? ग्यारहवें गुणस्थान में जो ५६ प्रकृतियों का उदय होता है, उनमें से वज्रनाराच और नाराच संहनन इन दो व्युच्छित्ति प्रकृतियों को घटा देने पर ५७ प्रकृतियों का उदय होता है । (७४) बारहवें गुणस्थान में सत्व कितनी प्रकृतियों का रहता है ? (यहां केवल एक क्षपक श्रेणी हो सम्भव है ) दशवे गुणस्थान में अपक श्रेणीवाले की अपेक्षा १०२ प्रकृतियों का सत्व है । उन में से व्युच्छित्ति प्रकृति संज्वलन लोभ को घटा देने पर शेष रही १०१ प्रकृतियों का सत्व रहता है ।
(७५) सयोग केवली नामक तेरहवें गुणस्थान का स्वरूप क्या है और वह किसके होता है ?
घातिया कर्मों की ४७ (देखो अध्याय ३ अधिकार १ ) और अघातिया कर्मों की १६ ( नरकगति, नरक गत्यानुपूर्वी, विकलar ३, आयुत्रिक ३, उद्योत, आतप, एकेन्द्रिय, साधारण, सूक्ष्म, स्थावर) ये मिलकर ६३ प्रकृतियों का क्षय होने से लोकालोक प्रकाशक केवलज्ञान तथा मनोयोग, वचनयोग, काययोग के धारक अर्हन्त भट्टारक के संयोग केवली नामक तेरहवां गुणस्थान होता है । यही केवली भगवान अपनी दिव्यध्वनि से भव्य