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५-गुणस्थान
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२-गुणस्थानाधिकार में से व्युच्छित्ति प्रकृति ६ को घटाने पर शेष रही ६० प्रकृतियों का उदय होता है। (व्युच्छित्ति की ६=स्त्रीवेद, पुरुषवेद,
नपुसकवेद, संज्वलन क्रोध मान माया)। (६६) दश गुणस्थान में सत्व कितनी प्रकृतियों का होता है ?
उपशम श्रेणी में तो नवमें की तरह द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टि के १४२ और क्षायिक सम्यग्दृष्टि के १३६ । क्षपक श्रेणी वाले के नवमें गुणस्थान में जो १३८ प्रकृतियों का सत्व है उनमें से व्युच्छित्ति प्रकृति ३६ को घटाने पर शेष रही १०२ प्रकृतियों का सत्व रहता है । (व्युच्छित्ति की ३६ तिर्यग्गति, तिर्यग्गत्यानुपूर्वी, विकलत्रय ३, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगद्धि, उद्योत, आतप, एकेन्द्रिय, साधारण, सूक्ष्म, स्थावर, अप्रत्याख्यानावरण ४, प्रत्याख्यःनावरण ४, नोकपाय ई, संज्वलन क्रोध
मान माया, नरक गति, नरक गत्यानुपूर्वी)। (६७) ग्यारहवें उपशान्तमोह गणस्थान का क्या स्वरूप है ?
चारित्र मोहनीय की २१ प्रकृतियों के उपशम होने से यथाख्यात चारित्र को धारण करनेवाले मुनि के उपशान्त मोह नामक गुणस्थान होता है। इस गुणस्थान का काल समाप्त होने पर
मोहनीय के उदय से जीव निचले गुणस्थानों में आ जाता है। (६८) ग्यारहवें गुणस्थान में बन्ध कितनी प्रकृतियों का होता है ?
दशवें गुणस्थान में जो १७ प्रकृतियों का बन्ध होता था, उनमें से व्युच्छित्ति प्रकृति १६ अर्थात ज्ञानावरणीय की ५, दर्शनावरणीय की ४, अन्तराय की ५, यशस्कीति व उच्चगोत्र इन सबको घटा देने पर शेष रही एकमात्र साता वेदनीय का
बन्ध होता है। (६६) ग्यारहवं गुणस्थान में उदय कितनी प्रकृतियों का होता है ?
दशवें गुणस्थान में जो ६० प्रकृतियों का उदय होता है, उनमें से व्युच्छित्ति प्रकृति एक संज्वलन लोभ को घटा देने पर शेष रही ५६ प्रकृतियों का उदय रहता है।