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५-गुणस्थान
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२-गुणस्थानाधिकार २१. मिश्र गुणस्थान में गत्यानुपूर्वी क्यों घटाई ?
क्योंकि इस गुणस्थान में मरण नहीं होता। (२२) मिथ गुणस्थान में सत्व कितनी प्रकृतियों का रहता है ?
तीर्थंकर प्रकृति के विना १४७ प्रकृतियों का सत्व रहता है। (२३) चौथे अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान का क्या स्वरूप हैं ?
दर्शनमोहनीय की ३ और अनन्तानुबन्धी की चार इन सात प्रकृतियों के उपशम अथवा क्षय अथवा क्षयोपशम से और अप्रत्याख्यानावरण कोध मान माया लोभ के उदय से व्रत रहित
सम्यक्त्वधारी चौथे गुणस्थानवर्ती होता है। (२४) इस चौथे गुणस्थान में बन्ध कितनी प्रकृतियों का होता है ?
तीसरे गुणस्थान में ७४ प्रकृतियों का बन्ध होता है, जिनमें मनुष्यायु, देवायु और तीर्थकर (जो पहले अबन्ध रूप थी) इन
तीन प्रकृतियों सहित ७७ प्रकृतियों का यहां बन्ध होता है । (२५) चौथे गुणस्थान में उदय कितनी प्रकृतियों का होता है ?
तीसरे गुणस्थान में १०० प्रकृतियों का उदय होता है । उनमें से व्युच्छिन्न प्रकृति सम्यग्मिथ्यात्व के घटाने पर रही ६६। इनमें चार आनुपूर्वी और एक सम्यक्प्रकृति (जो पहले अनुदय रूप थी) इन पांच प्रकृतियों के मिलाने पर १०४ प्रकृतियों का उदय
होता है। (२६) चौथे गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों का सत्व रहता है ?
सबका । अर्थात १४८ प्रकृतियों का, किन्तु क्षायिक सम्यग्दृष्टि के १४१ का ही सत्व है (क्योंकि दर्शनमोहनीय की तीन और
अनन्तानुबन्धी चार इन सात प्रकृतियों का क्षय हो गया है।) (२७) देशविरत नामक पांचवें गणस्थान का क्या स्वरूप है ?
प्रत्याख्यानावरण क्रोध मान माया लोभ के उदय से यद्यपि संयम भाव नहीं होता तथापि अप्रत्याख्यानावरण क्रोध मान माया लोभ के उपशम से (क्षयोपशमसे) श्रावक व्रतरूप देशचारित्र होता है । इसही को देशविरत नामक पांचवां गुणस्थान कहते हैं । पाँचवें आदि समस्त ऊपर के गुणस्थानों में सम्यग