________________
५-गुणस्थान
२४६
२ - गुणस्थानाधिकार
(१८) तीसरा मिश्र गुणस्थान किसको कहते हैं ? सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति के उदय से जीव के न तो सम्यक्त्व परिणाम होते हैं और न केवल मिथ्यात्व रूप परिणाम होते हैं, किन्तु मिले हुए दही गुड़ के स्वाद की तरह एक भिन्न जाति के मिश्र परिणाम होते हैं । इसी को मिश्र गुणस्थान कहते हैं।
(१६) मिश्र गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों का बन्ध होता है ?
दूसरे गुणस्थान में बन्ध प्रकृति १०१ थीं। उनमें से व्युच्छित्ति प्रकृति २५ को घटाने पर शेष रही ७६ । परन्तु इस गुणस्थान में किसी भी आयु का बन्ध नहीं होता है, इसलिये ७६ में से मनुष्याय देवायु इन दो के घटाने पर ७४ प्रकृतियों का बन्ध होता है। नरकायु की पहले गुणस्थान में और तिर्यचायु की दूसरे गुणस्थान में ही व्युच्छित्ति हो चुकी है । ( व्युच्छित्ति वाली २५ प्रकृतियां इस प्रकार हैं - अनन्तानुबन्धी क्रोध मान माया लोभ, स्त्यानगृद्धि, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय; यग्रोधपरिमण्डल, स्वाति, कुन्जक, बामन संस्थान; वज्रनाराच, नाराच, अर्द्धनाराच कीलित संहनन; अप्रशस्त विहायोगति, स्त्रीवेद, नीच गोत्र, तिर्यग्गति, तिर्यग्गत्यानुपूर्वी, तिर्यगायु और उद्योत ) ।
(२०) मिश्र गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों का उदय होता है ? दूसरे गुणस्थान में १११ प्रकृतियों का उदय होता है, उनमें से व्युच्छिन्न प्रकृति के घटाने पर शेष रही १०२ में से नरक गत्यानुपूर्वी के बिना ( क्योंकि यह दूसरे गुण स्थान में घटाई जा चुकी है) शेप की तीन आनुपूर्वी घटाने पर शेष रही ६६ प्रकृति और एक सम्यक् प्रकृति (जिसका पहले अनुदय ) का उदय यहां आ मिला; इस कारण इस गुणस्थान में १०० प्रकृतियों का उदय है । व्युच्छित्ति की प्रकृतियां ये हैं - अनन्तानु बन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ; एकेन्द्रियादि ४ जाति; स्थावर १ ।