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५-गुणस्थान
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२-गुणस्थानाधिकार से मिथ्यात्व गुणस्थान में जिनकी व्युच्छित्ति है, ऐसी १६ प्रकृतियों के घटाने पर १०१ प्रकृतियों का बन्ध सासादन में होता है । वे सोलह प्रकृतियें ये हैं-मिथ्यात्व, हुँडक संस्थान, नपुंसक वेद, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, नरकायु, अंसप्राप्तसृपाटिका संहनन, एकेन्द्रिय जाति, विकलत्रय तीन जाति, स्थावर, आतप,
सूक्ष्म, अपर्याप्ति और साधारण । (१४) व्युच्छित्ति किसे कहते हैं ?
जिस गुणस्थान में कर्म प्रकृतियों के बन्ध उदय अथवा सत्व की व्युच्छित्ति कही हो, उस गुणस्थान तक ही उन प्रकृतियों का बन्ध उदय अथवा सत्व पाया जाता है। आगे के किसी भी गुणस्थान में उन प्रकृतियों का बन्ध, उदय अथवा सत्व नहीं
होता है । इसी को व्युच्छित्ति कहते हैं । १५. अबन्ध अनुदय व असत्य किसको कहते हैं ?
जिस गुणस्थान में कर्म प्रकृतियों के अबन्ध अनुदय अथवा असत्व कहा हो, उस गुणस्थान में ही उन प्रकृतियों का बन्ध उदय या सत्व नहीं होता। आगे किसी योग्य गुणस्थान में वे
प्रकृतियें बन्ध उदय अथवा सत्व रूप हो जाती हैं। (१६) सासादन गुणस्थान में उदय कितनी प्रकृतियों का होता है ?
पहिले गुणस्थान में जो ११७ प्रकृतियों का उदय होता है, उनमें से मिथ्यात्व, आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्ति और साधारण इन पांच मिथ्यात्व गुणस्थान की व्युच्छित्ति प्रकृतियों को घटाने पर ११२ रहीं। परन्तु नरकगत्यानुपूर्वी का इस गुण स्थान में उदय नहीं होता, इसलिये इस गुण स्थान में १११ प्रकृतियों
का उदय रहता है। (१७) सासादन गुणस्थान में सत्व कितनी प्रकृतियों का होता है ?
एक सौ पैतालीस प्रकृतियों का सत्व रहता है। यहां पर तीर्थकर प्रकृति, आहारक शरीर और आहारक अंगोपांग इन तीन प्रकृतियों की सत्ता नहीं रहती (असत्त्व है)।