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३- कर्म सिद्धान्त
३-बन्धकारण अधिकार
अभिसन्निवेष (अभिप्राय) को एकान्तिक मिध्यात्व कहते हैं । जैसे बौद्ध मतावलम्बी पदार्थ को सर्वथा क्षणिक मानते हैं । ( २० ) विपरीत मिथ्यात्व किसको कहते हैं ?
'सग्रन्थ' निर्ग्रन्थ हैं, 'केवली' मासाहारी हैं, इत्यादि रुचि को विपरीत मिथ्यात्व कहते हैं ।
(२१) अज्ञानिक मिथ्यात्व किसको कहते हैं ?
जहां हिताहित विवेक का कुछ भी सद्भाव नहीं हो, उसको अज्ञानिक मिथ्यात्व कहते हैं ।
(२२) वैनयिक मिथ्यात्व किसको कहते हैं ?
समस्त देव तथा समस्त मतों में समदर्शीपने को वैनयिक मिथ्यात्व कहते हैं ।
(२३) अविरति किसको कहते हैं ?
हिंसादि पापों में तथा इन्द्रिय और मनके विषयों में प्रवृत्ति होने को अविरति कहते हैं।
(२४) अविरति के कितने भेद हैं ?
तीन हैं - अनन्तानुबन्धी कषायोदय जनित, अप्रत्याख्यानावरण कषायोदय जनित और प्रत्याख्यानावरण कषायोदय जनित । (२५) प्रमाद किसको कहते हैं ?
संज्वलन और नोकषाय के तीव्र उदय से निरतिचार चारित पालने में अनुत्साह को तथा स्वरूप की असावधानता को प्रमाद कहते हैं ।
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(२६) प्रमाद के कितने भेद हैं ?
पंद्रह भेद हैं- विकथा ४ ( स्त्री कथा, राष्ट्र कथा, भोजन कथा, राज कथा ), कषाय ४ ( संज्वलन के तीव्रोदय जनित क्रोध मान माया लोभ), इन्द्रियों के विषय ५ ( स्पर्श, रस, गन्ध, रूप, शब्द), निद्रा १, स्नेह १ |
(२७) कषाय किसको कहते हैं ?
( यहां बन्ध के प्रकरण में) संज्वलन और नोकषाय के मन्द