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३-कर्म सिद्धान्त
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२-बन्धकारण अधिकार
उदय से प्रादुर्भूत आत्मा के परिणाम विशेषको कषाय कहते
हैं।
(२८) योग किसको कहते हैं ?
मनोवर्गणा अथवा कायवर्गणा (आहारक वर्गणा, कार्माण वर्गणा व तेजस वर्गणा) और वचन वर्गणा के अवलम्बन से
कर्म नोकर्मको ग्रहण करने की शक्ति विशेषको योग कहते हैं । (२६) योग के कितने भेद हैं ?
पन्द्रह भेद हैं-मनोयोग ४ (सत्य, असत्य, उभय, अनुभय), काय योग ७ (औदारिक, औदारिक मिश्र, वैक्रियक, वैक्रियक मिश्र, आहारक, आहारक मिश्र, तथा कार्माण), वचन योग ४
(सत्य, असत्य, उभय, अनुभय)। ३० तैजस योग क्यों न कहा?
तेजस शरीर कान्ति मात्र के लिए है परिस्पन्द के लिये नहीं। (३१) मिथ्यात्व की प्रधानता से किन किन प्रकृतियों का बन्ध होता
सोलह प्रकृतियों का बन्ध होता है-मिथ्यात्व, हुंडक संस्थान, नपुंसक वेद, नरक गति, नरक गत्यानुपूर्वी, नरकायु, असंप्राप्त सृपाटिका संहनन, जाति ४ (एकेन्द्रियादि), स्थावर, आतप,
सूक्ष्म, अपर्याप्ति, साधारण। (३२) अनन्तानुबन्ध की कषायोदय जनित अविरति से किन किन
प्रकृतियों का बन्ध होता है ? पच्चीस प्रकृतियों का बन्ध होता है-अनन्तानुबन्धी क्रोध मान माया लोभ, स्त्यान गृद्धि, निद्रा निद्रा, प्रचला प्रचला, दुःस्वर, दुर्भग, अनादेय, अप्रशस्त विहायोगति, स्त्रीवेद, नीच गोत्र, तिर्यग्गति, तिर्यग्गत्यानुपूर्वी, तिर्यगायु, उद्योत, संस्थान ४ (न्यग्रोध परिमण्डल, स्वाति, कुब्जक, वामन), संहनन ४ (वज्रनाराच, नाराच, अर्ध नाराच, कीलित)।