________________
३-कर्म सिद्धान्त
२१०
३-बन्धकारण अधिकार को द्रव्य बन्ध का उपादान कारण कहते हैं। (१४) प्रकृति बन्ध व अनुभाग बन्ध में क्या भेद है ?
प्रकृति बन्ध के भिन्न उपादान शक्ति युक्त अनेक भेद रूप कर्माण स्कन्ध का आत्मा से सम्बन्ध होने को प्रकृति बन्ध कहते हैं, और उन्हीं स्कन्धों में फलदान शक्ति के तारतम्य को
(न्यूनाधिकता को)अनुभागबन्ध कहते हैं। (१५) समस्त प्रकृतियों के बन्ध का कारण सामान्यतया योग है या
उसमें कुछ विशेषता है ? जिस प्रकार भिन्न-भिन्न उपादान शक्ति युक्त नाना प्रकार के भोपतों को मनुष्य हस्त द्वारा इच्छा विशेष पूर्वक ग्रहण करता हैं और विशेष इच्छा के अभाव में उदर पूरण के लिये भोजन सामान्य का ग्रहण करता है, उस ही प्रकार यह जीव विशेष कषाय के अभाव में योग मात्र से केवल सातावेदनीय रूप कर्म को ग्रहण करता है, परन्तु वह योग यदि किसी कषाय विशेष से अनुरंजित हो तो अन्यरूप प्रकृतियों का भी बन्ध करता है। (प्रकृति आदि बन्ध के कारण योग व उपयोग देखो पहले मूलो
त्तर प्रकृति परिचय) (१६) प्रकृतिबन्ध के कारणत्व की अपेक्षा से स्त्रव के कितने
भेद हैं ?
पांच हैं-मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय, योग । १७. मिथ्यात्व किसको कहते हैं ?
मिथ्यात्व प्रकृति के उदय से अदेव में देव बुद्धि, अतत्व में तत्व बुद्धि, अधर्म में धर्म बुद्धि इत्यादि विपरीताभिनिवेश रूप जीव
के परिणामों को मिथ्यात्व कहते हैं । (१८) मिथ्यात्व के कितने भेद हैं ?
पांच हैं-एकान्तिक मिथ्यात्व, विपरीत मिथ्यात्व, सांशयिक
मिथ्यात्व, अज्ञानिक मिथ्यात्व और वैनयिक मिथ्यात्व । (१९) एकान्तिक मिथ्यात्व किसको कहते हैं ?
धर्म धर्मी के 'यह ऐसा ही है अन्यथा नहीं' इत्यादि अत्यन्त