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३-कर्म सिद्धान्त
२०६ ३-बन्धकारण अधिकार और एक तीसरा विजातीय रूप धारण कर लेते हैं, जो दोनों में से किसी का भी नहीं कहा जा सकता। उनका मिश्रित स्वभाव बिल्कुल विचित्र हो जाता है जैसे हाइड्रोजन और आक्सीजन दो वायु जातीय गैसों के मिलने पर एक तीसरा जलीय द्रव्य बन जाता है, जिसका स्वभाव अग्नि वर्धन की
बजाय अब अग्नि शमन हो जाता है । ७. बन्ध कितने प्रकार का है ?
दो प्रकार का-भावबन्ध और द्रव्य बन्ध । (८) भाव बन्ध किसको कहते हैं ?
आत्मा के कषाय योग रूप भावों को भाव बन्ध कहते हैं। (नोट :- योग यद्यपि द्रव्यात्मक है, परन्तु जीव पुद्गल बन्ध के इस प्रकरण जीवात्मक होने से भावबन्ध कहा गया है क्योंकि
जीव भावात्मक द्रव्य माना गया है और पुद्गल द्रव्यात्मक)। (8) द्रव्य बन्ध किसको कहते हैं ? ।
कार्माण स्कन्ध रूप पुद्गल द्रव्य में आत्मा के साथ सम्बन्ध
होने की शक्ति को द्रव्य बन्ध कहते हैं । (१०) भाव बन्ध का निमित्त कारण क्या है ?
उदय तथा उदरिणा अवस्थाको प्राप्त पूर्व बद्ध कर्म भावबन्ध
का निमित्त कारण है। (११) भाव बन्ध का उपादान कारण क्या है ?
भाव बन्ध के विवक्षित समय से अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती योग कषाय रूप आत्मा की पर्याय विशेष को भाव बन्ध का उपादान
कारण कहते हैं। (१२) द्रव्य बन्ध का निमित्त कारण क्या ?
आत्माके योग कषाय रूप परिणाम द्रव्य बन्ध के निमित्त कारण
(१३) द्रव्य बन्ध का उपादान कारण क्या?
बन्ध होने के पूर्व क्षण में बन्ध होने के सन्मुख कार्माण स्कन्ध