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३- कर्म सिद्धान्त
८. क्षय के कितने भेद हैं ?
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२- उदय उपशम आदि
दो हैं - अत्यन्त क्षय और उदयाभाव क्षय ।
६. अत्यन्त क्षय किसको कहते हैं ?
कर्मों के प्रदेशों का ही झड़ जाना या अन्य रूप हो जाना अत्यन्त क्षय है ।
१०. उदयाभाव क्षय किसको कहते हैं ?
बिना फल दिये कर्मों के छूट जाने को उदयाभावी क्षय कहते हैं । अथवा कर्मों की शक्ति का अत्यन्त क्षीण हो जाना उदयाभावी क्षय है, क्योंकि अब वह प्रकृति सर्वघाती के रूप में उदय न आ कर देशघाती के रूप में उदय आयेगी ।
(११) क्षयोपशम किसको कहते हैं ?
वर्तमान निषेकमें सर्वघाती स्पर्धक का उदयाभावी क्षय, तथा देशघाती स्पर्धकों का उदय और आगामी काल में उदय आने वाले निषेकों का सदवस्था रूप उपशम; ऐसी कर्म की अवस्था को क्षयोपशम कहते हैं ।
१२. क्षयोपशम के उपरोक्त स्वरूप को स्पष्ट समझाओ ।
क्षयोपशम की इस अवस्था में केवल देशघाती प्रकृति का उदय होता है सर्वघाती का नहीं, इसी कारण जीव के परिणाम धुले रहते हैं । सर्वघाती कर्मों का अनुभाग उदय में आने से पूर्व घट कर देशघाती बन जाता है और उस रूप से अगले समय में उदय आ जाता है । यही सर्वघाती स्पर्धक का उदयाभावी क्षय है । परन्तु सत्ता में अवश्य सर्वघाती स्पर्धक पड़े रहते हैं, जो आगे जाकर उदय में आयेंगे, परन्तु वर्तमान में किसी प्रकार भी उदय में नहीं आ सकते । यही आगामी निषेकों का सदवस्थारूप उपशम है । देशघाती प्रकृति दो हैं । एक तो पहली सत्ता में पड़ी हुई और दूसरी वह जो सर्वघाती प्रकृति के उदयाभावी क्षय द्वारा नई बनी है । दोनों का ही वर्तमान में उदय रहता है, जिसके कारण परिणामों में कुछ