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________________ -कर्म सिद्धान्त १६१ ११६. आहार पर्याप्ति किसे कहते हैं ? आहारक वर्गणा के परमाणुओं को खल रसभाव परिणामावने को कारणभूत जीव की शक्ति की पूर्णता । १२०. शरीर पर्याप्ति किसे कहते हैं ? १- बन्धाधिकार आहार पर्याप्ति द्वारा खलभाग रूप परिणमने वाले परमाणुओं का मांस हाड़ आदि कठोर रूप में और रसभाग रूप परिणमने वालों को रुधिरादि द्रव रूप में परिणमावने की कारणभूत जीव की शक्ति की पूर्णता । १२१. इन्द्रिय पर्याप्ति किसे कहते हैं ? उपरोक्त पर्याप्तियों द्वारा हाड़ आदि रूप परिणमने को समर्थ उन्हीं आहारक वर्गणा के परमाणुओं को इन्द्रियों के आकार रूप में परिमावने को कारण भूत जीव की शक्ति की पूर्णता । १२२. श्वासोच्छवास पर्याप्ति किसे कहते हैं ? उपरोक्त में से अतिरिक्त अन्य आहारक वर्गणाओं को ग्रहण करके उण्हें श्वासोच्छ्वास रूप में परिणमावने को कारण भूत जीव की शक्ति की पूर्णता १२३ भाषा पर्याप्ति किसे कहते हैं ? भाषा वर्गणाओं को ग्रहण करके उन्हें वचन रूप में परिणमावने को कारण भूत जीव की शक्ति की पूर्णता । १२४. मनः पर्याप्ति किसे कहते हैं ? मनोवर्गणा को ग्रहण करके उन्हें मन हृदय स्थान में अष्ट पांखुड़ी के कमलाकार मन के रूप में परिणमावने को कारण भूत जीव को शक्ति की पूर्णता । १२५. छहों पर्याप्तियों में कितना कितना काल लगता है ? उपरोक्त क्रम से ही एक के पश्चात एक पूरी होते हुए इन सबका पूरा काल अन्तर्मुहूर्त मात्र है । पृथक पृथक एक एक का पूर्ति काल भी अन्तमुहूर्त ही है । पहली पर्याप्ति से दूसरी का, दूसरी से तीसरी का इसी प्रकार आगे आगे वाली पर्याप्ति
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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