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३-कर्म सिद्धान्त
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१-बन्धाधिकार (१०६) परघात नामकर्म किसको कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से दूसरे का घात करने वाले अंग हों (जैसे
सिंह के नख)। (११०) आतप नामकर्म किसको कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से आतप रूप शरीर हो, जैसे सूर्य का
प्रतिबिम्ब (और अग्नि)। (१११) उद्योत नाम कर्म किसको कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से उद्योत रूप शरीर है। (अर्थात चन्द्रमा
वत् शीतल प्रकाशयुक्त शरीर है जैसे खद्योत) (११२) विहायोगति नाम कर्म किसको कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से आकाश में गमन हो। उसके शुभ और
अशुभ ऐसे दो भेद हैं; (यथा मनुष्य की चाल व ऊंट की चाल) (११३) उच्छवास नामकर्म किसको कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से श्वासोच्छवास हो । (११४) बस नाम कर्म किसको कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से द्वीन्द्रियादि जीवों में जन्म हो । (११५) स्थावर नाम कर्म किसको कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से पृथ्वी अप तेज वायु और वनस्पति में
जन्म हो। (११६) पर्याप्ति कर्म किसको कहते हैं ?
जिसके उदय से अपने अपने योग्य पर्याप्ति पूर्ण हो । (११७) पर्याप्ति किसको कहते हैं ?
आहारक वर्गणा, भाषा वर्गणा और मनोवर्गणा के परमाणुओं को शरीर इन्द्रियादि रूप परिणमावने की शक्ति की पूर्णता को
पर्याप्ति कहते हैं। (११८) पर्याप्ति के कितने भेद हैं ?
छह-प्रथम आहार पर्याप्ति, दूसरी शरीर पर्याप्ति, तीसरी इन्द्रिय पर्याप्ति, चौथी श्वासोच्छवास पर्याप्ति, पांचवीं भाषा पर्याप्ति, छटी मनः पर्याप्ति ।