________________
१८६
३.कर्म सिद्धान्त
१-बन्धाधिकार ही हड्डी चमड़ा आदि होता है, वैक्रियक आदि शरीरों में
नहीं । (85) वर्ण नामकर्म किसको कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से शरीर में रंग हो। (१००) गन्ध नाम कर्म किसको कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से शरीर में गन्ध हो । (१०१) रस नाम कर्म किसको कहते हैं ? - जिस कर्म के उदय से शरीर में रस हो । (१०२) स्पर्श नाम कर्म किसको कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से शरीर में स्पर्श हो । १०३. वर्ण गन्ध रस व स्पर्श किस शरीर में होते हैं ?
सभी शरीर में होते हैं, क्योंकि वे पुद्गल के गुण हैं। १०४. अंगोपांग नाम कर्म के तीन ही भेद क्यों किये ?
औदारिकादि तीन शरीर ही अंगोपांग युक्त होते है, तेजस व
कर्माण के अपने कोई स्वतंत्र अंगोपांग नहीं होते । (१०५) आनुपूर्वो नाम कर्म किसे कहते हैं ? . जिस कर्म के उदय से आत्मा के प्रदेश मरण से पीछे और
जन्म से पहले अर्थात विग्रहगति में मरण से पहले के शरीर के
आकार रहें। (१०६) अगुरु लघु नाम कर्म किसे कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से शरीर लोहे के गोले की तरह भारी और
आक के तूल की तरह हलका न हो। १०७. अगुरुलघु गण को घाते सो अगुरुलघु कर्म ऐसा कहें तो?
यह कर्म शरीर से सम्बन्ध रखता है, आत्मा से नहीं, अतः
शरीर के भारी हलके पने में ही इसका व्यापार है। (१०८) उपघात नाम कर्म किसको कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से अपना घात करने वाले ही अंग हों (जैसे बारह सींगे के सींग)।