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१ - बन्धाधिकार
१३- कर्म सिद्धान्त
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( ८e) हुण्डक संस्थान किसे कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से शरीर के अंगोपांग किसी खास शकल के न हों ।
(६०) संहनन नाम कर्म किसे कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से हाड़ों का बन्धन विशेष हो, उसे संहनन नामकर्म कहते हैं ।
(१) वज्रर्षभनाराच संहनन किसको कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से वज्ज्र के हाड़ हों, वज्र की ही कीली हों तथा वेष्टन ( चमड़ा ) भी वज्र के हों ।
६२. वज्र के हाड़ आदि कैसे ?
अत्यंत कठोर, सुदृढ़ व मजबूत हड्डी, चमड़ा आदि वज्र का कहा जाता है ।
(१३) वज्रनाराच संहनन किसको कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से वज्र के हाड़ व वज्र की कीली हों परन्तु वेष्टन वज्र का न हो ।
(६४) नाराच संहनन किसे कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से वेष्टन और कीली सहित हाड़ हों (पर कोई भी वस्तु वज्र की न हो) ।
(६५) अर्द्ध नाराच संहनन किसको कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से हाड़ों की संधि अर्द्धकीलित हो ।
(६६) कीलक संहनन किसको कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से (बिना कीलों के) हाड़ परस्पर कीलित हों ।
(७) असंप्राप्त सुपाटिका संहनन किसको कहते हैं ?
जिस कर्म के उदय से जुदे जुदे हाड़ नसों से बन्धे हों, परस्पर कीले हुए न हों ।
८. संहनन कौन से शरीर में होता है ?
केवल औदारिक शरीर में ही संहनन होता है, क्योंकि उसमें