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१- बन्धाधिकार
३ - कर्म सिद्धान्त
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५३. वासना कितने प्रकार की है ?
चार प्रकार की - अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान व संज्वलन |
५४. वासना के भेदों को क्रोधादि कषायों का विशेषण क्यों बनाया ? क्रोधादि चार कषाय अपनी अपनी तीव्र या मन्द वासना की अपेक्षा प्रत्येक चार चार प्रकार की हो जाती है; जैसे क्रोध भी अनन्तानुबन्धी आदि चार प्रकार का और मान आदि भी । (५५) नोकषाय के कितने भेद हैं ?
नव - हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा ( ग्लानि), स्त्री वेद, पुरुषवेद, नपुंसक वेद ।
५६. वेद किसे कहते हैं ?
स्त्री के पुरुष के साथ, पुरुष के स्त्री के साथ और नपुंसक के दोनों के साथ मैथुन करने का अन्तरंग भाव वेद कहलाता है । ५७. वेद कितने प्रकार का है ?
दो प्रकार का -भाव वेद व द्रव्य वेद । इनमें से प्रत्येक के तीन तीन भेद हैं- स्त्री, पुरुष व नपुंसक ।
५८. द्रव्य व भाव वेद किसे कहते हैं ?
अन्तरंग में मैथुन भाव रूप कषाय का होना भाव वेद है और शरीर में स्त्री पुरुष आदि के अंगोपागों का होना द्रव्य वेद है । ५६. नोकषायों के साथ अनन्तानुबन्धी आदि भेद क्यों न बताये ?
ये कषायें उदय काल मात्र को स्थित रहती हैं, पीछे पूर्ण विनष्ट हो जाती हैं । फिर निमितादि मिलने पर उदित हो जाती हैं। इनकी कोई वासना नहीं होती इसलिये इन्हें अनन्तानुबन्धी भेदों युक्त नहीं कहा जाता ।
६०. नोकषायों को 'नो' क्यों कहा गया ?
वासना विहीन होने से ये किंचित कषाय हैं पूरी नहीं । (६१) अनन्तानुबन्धी क्रोधमान, माया, लोभ किसे कहते हैं ? जो आत्मा के स्वरूपाचरण चारित्र को घाते उनको अनन्तानुबन्धी क्रोध मान माया लोभ कहते हैं ।