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१- बन्धाधिकार
वश व्यक्ति को जान से मार देना और मन्दता का अर्थ है मन्द रूप में केवल कुछ लक्षणों का व्यक्त होना जैसे केवल एक घुड़की देकर क्रोध व्यक्त करना । वासना की तीव्रता का अर्थ है उसका भव भवान्तर तक जीव के अन्दर आशय रूप से स्थित रहना और मन्दता का अर्थ है उत्पन्न होने के कुछ क्षणों पश्चात ही धुल जाना ।
४७. कषाय व वासना में अधिक घातक कौन ?
३- कर्म सिद्धान्त
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वासना अधिक घातक है, क्योंकि कषाय दब भी जाये तब भी वह अन्दर ही अन्दर व्यक्ति को संतप्त किये रहती है । दूसरी ओर वासना धुल जाये तो कषाय होनी सम्भव ही नहीं है । ४८. कषाय की तीव्रता मन्दता को आगम में क्या कहा है ?
लेश्या ।
४६. लेश्या किसे कहते हैं ?
कषाय में रंगी हुई जीव की प्रवृत्ति या योग को लेश्या कहते हैं । इसी लिये इसे रंगों के नाम से बताया गया है । ५०. लेश्या कितने प्रकार की है ?
छः प्रकार की - कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्य, ५१. छहों लेश्याओं में तीव्रता मन्दता दिखाओ ?
कृष्णादि तीन अशुभ हैं और पीत आदि तीन शुभ । तहां कृष्ण लेश्या अत्यन्त तीव्र क्रोधादि रूप प्रवृत्ति का नाम है और कापोत अत्यन्त मन्द का । पीत लेश्या अत्यन्त तीव्र दया दान आदि रूप प्रवृत्ति का नाम है और श ुक्ल अत्यन्त मन्द का । ५२. कषाय व लेश्या में क्या अन्तर है ?
शुक्ल 1
कषाय उपयोग रूप है और लेश्या योग रूप | अन्तरंग उपयोग में कषाय भाव उदित होने पर तत्तद्योग्य प्रवृति मन वचन काय की प्रवृत्ति या योग होता ही है इसलिये दोनों एक हैं, पर समझाने के लिये दो भेद करके बताया है ।