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३-कर्म सिद्धान्त
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१-बन्धाधिकार
अप्रत्याख्यानावरण मान, अप्रत्याख्यानावरण माया, अप्रत्याख्यानावरण लोभ । प्रत्याख्यानावरण क्रोध प्रत्याख्यानावरण मान, प्रत्याख्यानावरण माया, प्रत्याख्यानावरण लोभ । संज्वलन
क्रोध, संज्वलन मान, संज्वलन माया, संज्वलन लोभ । ४३. अनंतानुबन्धी आदि किन्हें कहते हैं ?
कषायों की वासना की तीव्रता मन्दता बनाने के लिये ये भेद
४५.
वासना किसे कहते हैं ? कषाय की अव्यक्त अन्तरंग धारणा को वासना कहते हैं। कषाय व वासना में क्या अन्तर है ? वासना कारण है और कषाय उसका कार्य, जैसे गुण और उसकी पर्याय । वासना अव्यक्त रूप से अन्दर स्थित रहती है जैसे गुण और कषाय व्यक्त रूप से बाहर प्रगट होती है जैसे पर्याय । वासना अनुभव में नहीं आती कषाय अनुभव में आती है । उदाहरण के रूप में - एक व्यक्ति को किसी से ईर्ष्या हो गई, वह अन्दर में वासना बन कर पड़ गई। बाहरी व्यवहार में वह व्यक्ति अब भी उसके साथ मित्रवत् मधुर व्यवहार करता है, पर भीतर में कटाकटी है । कभी अवसर मिलने पर उसको विस्फोट होता है, जिसके कारण कदाचित क्रोध की तड़क भड़क व लड़ाई मार पीट प्रगट हो जाती है। वह क्रोध कुछ देर पश्चात दब जाता है, पर उसकी वह पूर्व वासना अब भी बनी रहती है। कालान्तर में पूनः उसका विस्फोट होता है। वाह्य विस्फोट पुनः दब जाता है पर वासना फिर भी बनी रहती है। यहां बाह्य विस्फोट को कषाय कहा गया
है उस कषाय के भीतरी आशय को वासना। ४६. कषाय व वासना की तीव्रता मन्दता में क्या अन्तर है।
कषाय की तीव्रता का अर्थ है उसका तीव्र विस्फोट जैसे क्रोध