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२-द्रव्य गुण पर्याय
६-अन्य विषयाधिकार ८. गमन करते हुए मुड़ने से क्या समझे?
विग्रह गति में जीव सीधा ही चलता है तिरछा (diagonally) नहीं । यदि उसका इष्ट स्थान सीधे मार्ग (Horizontal या Vertical) से हटकर हो तो उसे वहाँ पहुँचने के लिये ऊर्ध्व रेखा पर (Vertical axis पर) या तिर्यक रेखा पर (Horizontal axis पर) चलकर आगे मुड़कर कोण बनाना पड़ेगा, अन्यथा
वह वहां पहुँच नहीं सकता। ६. विग्रह गति में अधिक से अधिक कितने मोड़ संभव हैं ?
तीन से अधिक सम्भव नहीं, क्योंकि एक दो या तीन कोण
बनाकर लोक के किसी भी कोने में पहुँचा जा सकता है। (१०) इन विग्रह गतियों में कितना-२ काल लगता है ?
ऋजुगति में एक समय, पाणिमुक्ता में अर्थात एक मोड़े वाली में दो समय, लांगलिका (दो मोड़े वाली में) में तीन समय और
गोमूत्रिका (तीन मोड़े वाली) में चार समय लगते हैं। ११. एक मोड़ में दो समय कैसे लगते हैं ?
एक समय से कम की कोई गति नहीं होती। मोड़ पर जाकर रुकना आवश्यक है, अतः मुड़ने के पश्चात नई गति प्रारम्भ होती है। इस प्रकार मुड़ने से पहिले और पीछे दो गतियों में दो समय लगना युक्त है। इसी प्रकार २ मोड़े वाली में ३ समय
और तीन मोड़े वाली में चार समय समझना। (१२) मुक्त होने पर जीव कौन सी गति से गमन करता है ? केवल ऋजु गति से । वह अनाहारक ही होता है ।
(२. समुद्धात) (१३) समुद्धात किसे कहते हैं ? ...मूल शरीर को छोड़े बिना जीव के प्रदेशों का बाहर निकलना ... समुद्धात कहलाता है।