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२-द्रव्य गुण पर्याय
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४-जीव गुणाधिकार
जाता है और विकल्प उत्तरोत्तर घटते जाते हैं। १९६. परिहार विशुद्धि चारित किसे कहते हैं ?
सामायिक चारित्र के प्रभाव से कषायों की अत्यन्त क्षति या परिहार होकर भावों में अत्यन्त विशुद्धि या उज्जवलता की
प्रगटता होना परिहार विशुद्धि चारित्र है। १९७. परिहार विशुद्धि किनको होता है ?
यह भी उपरोक्त प्रकार ही छटे में वें गणस्थान तक
होता है। १९८. सूक्ष्म साम्पराय चारित किसे कहते हैं ?
क्रोध, मान, माया व स्थूल लोभ का सर्वथा अभाव हो जाने पर जब उस साधु में लोभ का अन्तिम सूक्ष्म अंश अवशेष रहता है। उस समय उसके चारित्र को सूक्ष्म माम्पराय या सूक्ष्म
कषाय कहते हैं। १६६. सूक्ष्म साम्पराय किनको होता है ? ।
केवल १०वें गुणस्थान में होता है। २००. यथा ख्यात चारित किसे कहते हैं और किन्हें होता है ?
इसका स्वरूप कह दिया गया है। यहां विशेष इतना समझना कि १०वें गुणस्थान के अन्त में सूक्ष्म लोभ भी समाप्त हो जाने पर सम्पूर्ण कषायें निख शेष हो जाती हैं। तब जीव का जो ज्ञाता दृष्टास्वभाव है वह प्रगट हो जाता है, क्योंकि कषाय ही उसकी मलिनता का कारण थीं। जैसे स्वभाव कहा गया है वैसा ही प्रगट हो जाने से इस चारित्र का नाम यथाख्यात है। इसका स्वामित्व पहिले कह दिया गया, ११ वें से १४ वें तक होता है। पूर्ण ययाल्यात चारित्र में जघन्य उत्कृष्ट का भेद कैसे सम्भव है ? यद्यपि उपयोग पूर्ण होने से यथाख्यात है, पर योग में कमी है। निश्चल योग ही यथाख्यात है । जब तक वह प्राप्त नहीं होता तब जंघन्यता उत्कृष्टता मानवा ठीक ही है।
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