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२-य गुण पर्याय
४-जीव ग णाधिकार लिये इन द्वन्दों से उपयोग हटा कर पंचपरमेष्ठी आदि के प्रति लगाने का जभ्यास किया जाता है, और इस प्रकार उतने के ।
लिये उसमें भी आंशिक समता के चिन्ह प्रगट हो जाते हैं। १६१. सामायिक चारित्र किसको होता है ?
छटे गुण स्थामवर्ती मुनि से लेकर ६ गुणस्थान तक होता है छटे गुणस्थान में उसका जघन्य अंश होता है और ६ वें में उत्कृष्ट । देश चारित्र में भी तो सामायिक धत होता है ? वह सामायिक चरित्र का अभ्यास है. जो निश्चित काल पर्यन्त प्रतिज्ञा पूर्वक किया जाता है. पर यहां उन गुणस्थान वर्ती मुनियों का स्वभाव ही ऐसा हो जाता है, और इसी लिये वह
चारित्र नाम पाता है। १६३. ध्यान रूप सामायिक समय होता है या अन्य समयों में भी ?
उन वीतरागी साधुओं का जीवन या स्वभाव ही समता मयी हो जाने से उन्हे वह चारित्र २४ घन्टे होता है, भले ध्यान करो या उपदेश दो या आहार विहार आदि क्रिया करो । इतनी
बात अवश्य है कि ध्यान के समय वह विशेष वृद्धिगत होता है। १६४. छेदोपस्थापना चारित्र किसे कहते हैं ?
पूर्व संस्कार वश या कर्मोदय वश जब साध को जो व्रतों आदि के धारण पोषण के विकल्प रहते हैं उसे छेदो पस्थापना चारित्र कहते हैं । सामायिक रूप यथार्थ स्वभाव का छेद हो जाना तथा उपयोग को अशुभ से रोक कर व्रतों आदि के शुभ
भावों में स्थापित करना, ऐसा इसका अर्थ है । १६५. छेदोपस्थाना चारित्र किसको होता है ?
यह भी छटे से ६ वें गुणस्थान तक होता है । पर यहां छटे में उत्कृष्ट तथा ६ वें में जघन्य होता है, क्योंकि विकल्पात्मक होने से यह वास्तव में सामायिक से उलटा है। जू जू साधु ऊपर की भूमिका में पहुँचता है तू तूं अधिक अधिक सम होता