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२-ख्य गुण पर्याय
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४-जीव गुणाधिकार ५४. एकेन्द्रियादि असंजी पर्यंत जीवों को मन के अभाव में वह कैसे
सम्भव है ? उन्हें केवल हिताहित रूप ही श्रत ज्ञान होता है अन्य नहीं।
और संस्कारवश होने से उसमें मन का निमित्त होता नहीं। ८५. श्रुत ज्ञान का क्या विषय है ?
रूपी व अरूपी, चेतन व अचेत सभी द्रव्यों की स्थूल सूक्ष्म कुछ पर्यायें इसका विषय है। अत: वह लगभग केवल ज्ञान के
बराबर है। ८६. मोक्ष मार्ग में श्रत ज्ञान का क्या स्थान है ?
केवल ज्ञान की बराबरी करने मे छमस्थ के ज्ञानों में इसका मूल्य सर्वोपरि है । अवधि व मन पर्यय ज्ञान यद्यपि चमत्कारिक हैं पर आत्मानुभूति में समर्थ होने से श्रुत ज्ञान ही मोक्ष मार्ग में प्रयोजनीय है, अवधि व मनः पर्यय नहीं ।
(५. अवधिज्ञान) (८७) अवधिज्ञान किसे कहते हैं ?
द्रव्य क्षेत्र काल व भाव की मर्यादा लिये जो रूपी पदार्थों को स्पष्ट जाने । (नोट:-द्रव्य क्षेत्रादि की मर्यादा; रूपी पदार्थ आदि का क्या तात्पर्य है यह बात पहिले अध्याय १ अधिकार
२ में बता दी गई) ८८. अवधिज्ञान प्रत्यक्ष है या परोक्ष?
देश प्रत्यक्ष है सर्व प्रत्यक्ष नहीं, क्योंकि सकल द्रव्य क्षेत्र काल भाव को नहीं जानता। लक्षण में आये मर्यादा शब्द से यह
बात सूचित होती है। ८६. क्या अवधिज्ञानभूत भविष्यत को भी बात को जानता है ?
हां, सात आठ भवों आगे पीछे तक की बात जान सकता है, परन्तु केवल पुद्गल द्रव्य की या उसके निमित्त से होने वाले अशुद्ध भावों की ही जान सकता है, शुद्ध जीव व उसके भावों