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२-वध्य गुण पर्याय
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४-जीव गुणाधिकार की नहीं। (अशुद्ध जीव व उसके भावों को कैसे जान सकता
है, यह बात पहले अध्याय १ अधिकार २ में बता दी गई) । ६०. स्मृति व अवधिज्ञान में क्या अन्तर है ?
यद्यपि किन्हीं जीवों को अपने व अपने से सम्बन्ध रखने वाले कुछ अन्य जीवों के पूर्व भवों की स्मृति हो जाती है, पर वह मति ज्ञान है और मन के निमित्त से होने के कारण परोक्ष है। अवधिज्ञान प्रत्यक्ष होता है। स्मृति ज्ञान के लिये पूर्व धारणा या संस्कार की आवश्यकता है, अवधि ज्ञान को उसकी आवश्यकता नहीं। वह नवीन व अदृष्ट विषय को भी जान
सकता है। ६१. अनुमान व अवधिज्ञान में क्या अन्तर है ?
अनुमान में भी पूर्व स्मृति आदि की अपेक्षा पड़ती है, तथा उसके लिये विशेष रूप से बुद्धि पूर्वक विचार करना पड़ता है। परन्तु अवधिज्ञान में विचार करने की आवश्यकता नहीं । जैसे पदार्थ के प्रति नेत्र जाते ही बिना विचारे उसका प्रत्यक्ष हो जाता है. उसी प्रकार विषय के प्रति अवधिज्ञान के उपयुक्त
होते ही बिना विचारे उसका प्रत्यक्ष हो जाता है। ६२. ज्योतिष ज्ञान से भी भूत भविष्यत का ज्ञान हो जाता है ?
ठीक है, पर वह श्रुत ज्ञान है, अवधिज्ञान नहीं। क्योंकि वह भी कुछ बाह्य लक्षणों आदि को देखकर ही अनुमान द्वारा उसका फलादेश करता है । अवधिज्ञान में लक्षण आदि का
आश्रय लेने की आवश्यकता नहीं। ६३ अवधिज्ञान कितने प्रकार का होता है ?
दो प्रकार का-क्षयोपशम निमित्तक व भव प्रत्यय । ६४. क्षयोपशम निमित्तक अवधिज्ञान किसे कहते हैं ?
सम्यक्त्व व चारित्र के प्रभाव से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशमविशेष हो जाने पर जो मनुष्य व तिर्यञ्चों को