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जैन सिद्धान्त दीपिका बादर (स्थूल) लोक के थोड़े भाग में हैं ।
ये सब प्रत्येकशरीरवाले (एक शरीर में एक जीववाले) हैं । वनस्पति जीव साधारण शरीरवाले (एक शरीर में अनन्त जीववाले) भी होते हैं।
५. द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय जीव स हैं।
कृमि, चींटी, भौंरा, मनुष्य आदि में क्रमशः एक-एक इन्द्रिय की वृद्धि होती है और ये सब स कहलाते हैं । त्रस दो प्रकार के होते हैं-लब्धि-त्रस और गति-त्रस । लन्धि-त्रस को परिभाषा सूत्र ३ की वृत्ति में बतलाई जा चुकी है । अग्नि और वायु में गति है पर वह सुख की प्राप्ति एवं दुःख की निवृत्ति के लिए नहीं होती इसलिए इनको गति-प्रस कहते हैं।
पृथ्वी, पानी, अग्नि और वायु इनमें से प्रत्येक में असंख्य जीव हैं । वनस्पति में संख्यात, अमंख्यात और अनन्त जीव हैं। दोन्द्रिय से पञ्चेन्द्रिय तक प्रत्येक में असंख्य जीव हैं।
सिद्धान्तानुसार इनको सजीवता प्रमाणित है ही, जैसे-.. "भगवान् ! क्या पृथ्वीकाय के जीव माकार-उपयोग सहित हैं या अनाकार-उपयोग सहित ?
गौतम ! साकार उपयोग महिन भी हैं और अनाकार उपयोग सहित भी।"
६. जीव के दो भेद और भी हैं-समनस्क और बमनस्क ।
____ जिनमें भूत, भविष्य एवं वर्तमान काल सम्बन्धी विचारविमर्श करनेवाली संज्ञा होती है, उन्हें समनस्क या संशी कहते हैं और जिन जीवों में उपर्युक्त दीर्घकालिक संज्ञा नहीं होती,