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न सिमान्त दीपिका
२४. मति, ध्रुत और विभङ्ग ये तीनों मिप्यात्व-सहचरित होने के कारण अज्ञान कहलाते हैं।
अजान के प्रकरण में अवधि के स्थान में विभङ्ग का उल्लेख किया गया है।
मिथ्यात्वियों का बोध भी ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न होता है, किन्तु मिथ्यात्वसहवर्ती होने के कारण वह अज्ञान कहलाता है । जैसा कि आगम में कहा है -
साधारणतया मनि हो मतिज्ञान एवं मतिअज्ञान है । उसके पीछे विणेषण जोड़ देने से उसके दो भेद होते है. जैसे सम्यकदृष्टि की मति मनिज्ञान और मियादृष्टि की मति मतिअनान ।
जो जान का अभावल्प बोदपिक (जानावरणीय कर्म के उदय से) अज्ञान होता है, उसका यहां उल्लेख नहीं है।
मनःपर्याय और केवल ज्ञान केवल सम्यग्दृष्टि के ही होना है, अतः अज्ञान तीन ही हैं।
२५. दर्शन सामान्य धर्मों को जानता है अनः उस अनाकार उपयोग कहा जाता है।
वर्णन वस्तु के विणेष धर्मों को गौणकर सामान्य धर्मों को ग्रहण करता है, अतः वह अनाकार उपयोग कहलाता है।
२६. दर्शन के पार भेद हैं :
१. पनु ३. अवधि २. बचन ४. केवल पल के सामान्य बोध को पदर्शन बोर शेष इन्द्रिय तपा