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जैन सिद्धान्त दीपिका १३. निर्णयात्मक ज्ञान की अवस्थिति को धारणा कहा जाता है।
वासना और संस्कार ये धारणा के पर्यायवाची शब्द है। पांच इन्द्रिय और मन के साथ अवग्रह आदि का गुणन करने से (६४५-३०, चक्षु और मन का व्यञ्जनावग्रह नहीं होता अतः शेष २८) मति ज्ञान २८ प्रकार का होता है।
१४. द्रव्यश्रुत के अनुसार दूसरों को समझाने में समर्थ ज्ञान को श्रत. ज्ञान कहा जाता है।
द्रव्यश्रुत का अर्थ है-शब्द, मंकेत आदि ।
१५. श्रुत जान के चौदह भेद है :
१. अक्षरश्रुत ८. अनादिश्रुत २. अनक्षरथुन ६. मपर्यवमितथुन ३. मंजिथुन १०. अपयंवमित श्रुत ४. अमंजिश्रुत ११. गमिकश्रुत ५. मम्यकथुन १२. अगमिकथुत ६. मिथ्याश्रुत १३. अजप्रविष्टथुन ७. सादिश्रुत १४. अनङ्गप्रविष्टश्रुत
१६. इन्द्रिय और मन को सहायता के बिना केवल आत्मा के महार
जो रूपी द्रव्यों का ज्ञान होना है, उस अवधि शान कहा जाता है।
१७. देव और नारकों के अवधिज्ञान भवहेतुक होता है।
१. देखें परिशिष्ट १२