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जैन सिद्धान्त दीपिका
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भी नहीं रह सकते। उनकी अवगाहना असंख्यातवें भाग आदि में होती है।
परिणमन की विचित्रता से असंख्य प्रदेशात्मक लोक में भी अनन्तजीव और पुद्गलों का समा जाना तर्कसम्मत है। उदाहरणस्वरूप- जितने क्षेत्र में एक दीपक का प्रकाश फैलता है, उतने क्षेत्र में अनेक दीपकों का प्रकाश समा जाता है।
३५. काल केवल ममय-क्षेत्र में ही होता है।
ममय-क्षेत्र का अर्थ मनुष्यलोक है । व्यावहारिक कान का अर्थ है-मूर्य और चन्द्र द्वाग प्रवतिन दिन-रात, पक्ष-मास आदि कालविभाग । वह मनुष्य क्षेत्र में ही होता है।
नैश्चयिक काल का अर्थ है । वर्तनाकाल । वह प्रत्येक द्रव्य में होता है - अलोकाकाण में भी होता है इसलिए वह सर्वव्यापी
३६. द्रव्य के महभावी धर्म को गुण कहते है।
___ 'गुण द्रव्य के ही आधिन रहता है' इस आगम वाक्य के अनुमार गुण का आश्रय एकमात्र गुणी (द्रव्य) ही होता है अनाव द्रव्य के महभावी धर्म को गुण कहते हैं।
३७. गुण दो प्रकार का होता है. मामान्य और विशेष ।
द्रव्यों में समान रूप में व्याप्त रहने वाला गुण मामान्य गुण कहलाना है।
एक-एक द्रव्य में प्राप्त होने वाला गुण विणेप गुण कहलाता है।