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जैन सिदान्त दीपिका
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परिणत व्यक्ति को आगमतः भावउपाध्याय कहा जाता है।
उपाध्याय के अयं को जानने वाले तथा अध्यापन क्रिया में प्रवृत्त व्यक्ति को नोबागमत: भाव उपाध्याय कहा जाता है।
इन चार निक्षेपों में नाम, स्थापना और द्रव्य ये तीन दव्याक्षिकनय के विषय हैं और भावनिक्षेप पर्यायाथिकनय का ।
१०. निक्षेपों के द्वारा स्थापित पदार्थों का निर्देश आदि के द्वारा
अनुयोग (व्याच्या) होता है।
११. वय है-निर्देश, स्वामित्व, साधना, आधार, स्थिति, विधान, मा. मंत्र्या, क्षेत्र, स्पर्शन', काल, अन्नर, भाव और अल्लवहत्व ।
निर्देश · नाम-कथन। विधान प्रकार। मत् अग्नित्व। अन्तर विरहकाल। भाव --ौदयिक आदि। अल्पवहुन्य ---न्यूनना और अधिकता।
इति निक्षेपम्वरूप निर्णय
१. क्षेत्र उसे कहते हैं जहां वस्तु का प्रवगाहन होता है। जहां
अवगाहना से भी बाहर अतिरिक्त क्षेत्र का स्पर्श होता है, उसे म्पर्शना कहीं है, क्षेत्र और स्पर्शना में यही अन्ना है।