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चैन सिद्धान्त दीपिका
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शब्द का उपयोग मिलता है। जैसे-अङ्गारमर्दक को आचार्य. गुण-शून्य होने के कारण द्रव्यआचार्य कहा जाता है।
बागम' में द्रव्यविक्षेप के दो प्रकार बताए गए हैं : १. आगमतः' (जान की अपेक्षा से) २. नोमागमतः
आगमतः द्रव्य निक्षेप-जीव आदि पदार्थों का ज्ञाता, किन्नु वर्तमान में उपयोगण न्य।
नोआगमनः व्यनिक्षेप के तीन प्रकार होते हैं..-जगरीर (जानने वाले का गरीर), भव्य शरीर और तव्यतिरिक्त ।'
१. विवक्षिन त्रिया में परिणत वस्तु को भावनिक्षेप कहा जाता है।
भावनिक्षेप के भी दो प्रकार है : १. आगमनः २. नांआगमतः उपाध्याय के अथं को जानने वाले तथा उम अनुभव में
१. आगम अर्थात अनुयोगद्वार नामक आगम में यह निदिष्ट है। २. आगम अर्या। जान, जान की अपेक्षा में इसको आगमत: कहा
गया है। ३. नोगमतः जान के सर्वथा अभाव और देश अभाव दोनों का
मूचक है। ज शरीर और भव्य शरीर में जान का सर्वथा अभाव है तथा अनुपयुक्त अवस्था में की जानेवाली क्रिया में ज्ञान का
दंशतः अभाव है। क्रिया में जान का देशत: निषेध ही होता है। ४. जहां ज शरीर और भव्य शरीर के पूर्वोक्त लक्षण पटित नहीं
होते हैं वह तद्व्यतिरिक्त द्रव्यनिक्षेप होता है।