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जैन सिद्धान्त दीपिका
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६. मूल शब्द के अर्थ की अपेक्षा न रखने वाले संज्ञाकरण को नामनिक्षेप कहा जाता है ।
जाति, द्रव्य, गुण, क्रिया, लक्षण इन निमितों की अपेक्षा किए बिना संकेत मात्र से जो मंजा की जाती है वह नाम' निक्षेप है, जैसे- किसी अनक्षर व्यक्ति का 'उपाध्याय' नाम रखना ।
७. मूल अर्थ से शून्य वस्तु को उसी के अभिप्राय से स्थापित करने की स्थापनानिक्षेप कहा जाता है।
मूल अर्थ से रहित द्रव्य का 'यह वह है' इस अध्यवसाय से व्यवस्थापन करना स्थापनानिक्षेप है; जैसे - उपाध्याय की प्रतिमा स्थापनानिक्षेप ।
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स्थापना के दो प्रकार हैं :
१. सद्भाव स्थापना - जो मुख्य आकार के समान होती है।
२. असदभाव स्थापना — जो मुख्य आकार से शून्य होती है ।
८. भूत और भावी अवस्था के कारण तथा अनुपयोग को द्रव्य निक्षेप कहा जाता है।
जैसे- जो व्यक्ति पहले उपाध्याय रह चुका है अथवा भविष्य में उपाध्याय बनने वाला है, वह द्रव्य उपाध्याय है । अनुपयोग अवस्था (अध्यवसाय शुन्यता) में की जाने वाली क्रिया द्रव्यक्रिया होती है । क्वचिद् अप्रधान अर्थ में भी द्रव्य
१. अन्य अर्थ में स्थित तथा मूल अर्थ से निरपेक्ष ।