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जैन सिद्धान्त दीपिका
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आहारक लब्धि से निष्पन्न शरीर को आहारक कहते हैं । यह चतुर्दश- पूर्वधर मुनि के होता है।
तेजोमय परमाणुओं से निप्पन्न शरीर को तंजस कहते हैं । यह तेजीलब्धि, दीप्ति और पाचन का कारण होता है । कर्म समूह से निप्पन्न अथवा कर्म विकार को कार्मण शरीर कहते हैं ।
ये दोनों सब मंसारी जीवों के होते हैं।
२६. पांचों शरीर उत्तरोतर सूक्ष्म और प्रदेश ( स्कन्ध) परिमाण से असंख्य गुण होते हैं ।
२७. तेजस और कार्मण प्रदेश - परिमाण में अनन्नगुण होते हैं ।
२८. तेजस और कार्मण दोनों अन्तरालगति में भी होने हैं । अन्तरालगति दो प्रकार की होती है :
१. ऋजु २. विग्रह
जिस गति में एक समय लगे, उसे ऋजु और जिसमें दो, तीन एवं चार समय लगे, उसे विग्रहगति कहते हैं ।
विग्रहगति में दो समय तक अनाहारक अवस्था रहती है । अनाहारक अवस्था में सिर्फ एक कार्मणयोग ही होता है ।